सोमवार, 25 जुलाई 2011

सुखी कौन ? दुःखी कौन ??

सुखी कौन ? 

          एक शिष्य ने अपने गुरु से पूछा - गुरुदेव इस दुःखी संसार में सुखी कौन है ?

          गुरु ने जवाब दिया - वत्स ! जिसे किसी का एक पैसा भी कर्ज न चुकाना हो और शौच से निपटने में एक मिनिट से ज्यादा वक्त न लगता हो वही सुखी है ।

          शिष्य ने पूछा- ऐसा क्यों गुरुदेव तो गुरु बोले- ऐसा इसलिये कि कर्जदार न होगा तो मस्त और बेफिक्र रहेगा । कर्ज की चिन्ता से स्वास्थ्य खराब होता है और अपमानित भी होना पडता है । कहावत है कि औरत का खसम आदमी और आदमी का खसम कर्ज । इसी तरह जिसे शौच करते समय न तो इन्तजार करना पडे न जोर लगाना पडे और तत्काल खुलकर पेट साफ हो जाए उसकी पाचन शक्ति का क्या कहना ! इसलिये जिसकी आर्थिक स्थिति अच्छी हो और तन भी स्वस्थ हो तो मन तो प्रसन्न होगा ही । तो ऐसा ही व्यक्ति सुखी होगा । 
दुःखी कौन ? 
लोकेषु निर्धनो दुःखीऋणग्रस्तस्ततोsधिकम् ।
ताभ्याम् रोगमुक्ततो दुःखी, तेभ्यो दुःखी कुर्भायकः ।।

-विदुर नीति.
       संसार के दुःखियों में पहला दुःखी निर्धन है, उससे अधिक दुःखी वह है जिसे किसी का ऋण चुकाना हो, इन दोनों से भी अधिक दुःखी सदा रोगी रहने वाला मनुष्य है लेकिन इन सबसे ज्यादा दुःखी वह है जिसकी पत्नि या पति दुष्ट प्रवृत्ति का हो ।


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          उपरोक्त श्लोक में दुःखी व्यक्ति की अलग-अलग किस्मे बताई गई है जो सही भी है किन्तु देखने में आया है कि जब तक हमें अपने लिये सुख की और दूसरे को दुःख देने की चाह और कोशिश रहेगी तब तक हम दुःखी ही रहेंगे । जैसा हम चाहें वैसा न हो और जैसा न चाहें वैसा हो यही दुःखों का मूल कारण है ।
निरोगधाम से साभार...

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