शनिवार, 14 अप्रैल 2018

लस्सी



          लस्सी का ऑर्डर देकर हम सब आराम से बैठकर एक दूसरे की खिंचाई और हंसी-मजाक में लगे ही थे कि एक लगभग 70-75 साल की माताजी कुछ पैसे मांगते हुए मेरे सामने हाथ फैलाकर खड़ी हो गईं....!

          उनकी कमर झुकी हुई थी,. चेहरे की झुर्रियों में भूख तैर रही थी... आंखें भीतर को धंसी हुई किन्तु सजल थीं... उनको देखकर मन मे न जाने क्या आया कि मैने जेब मे सिक्के निकालने के लिए डाला हुआ हाथ वापस खींचते हुए उनसे पूछ लिया......

          "दादी लस्सी पियोगी ?"

          मेरी इस बात पर दादी कम अचंभित हुईं और मेरे मित्र अधिक... क्योंकि अगर मैं उनको पैसे देता तो बस 2 या 5 रुपए ही देता लेकिन लस्सी तो 35 रुपए की एक है... इसलिए लस्सी पिलाने से मेरे गरीब हो जाने की और उस बूढ़ी दादी के द्वारा मुझे ठग कर अमीर हो जाने की संभावना बहुत अधिक बढ़ गई थी!

          दादी ने सकुचाते हुए हामी भरी और अपने पास जो मांग कर जमा किए हुए 6-7 रुपए थे वो अपने कांपते हाथों से मेरी ओर बढ़ाए... मुझे कुछ समझ नही आया तो मैने उनसे पूछा...

          "ये किस लिए?"

          "इनको मिलाकर मेरी लस्सी के पैसे चुका देना बाबूजी !"

          भावुक तो मैं उनको देखकर ही हो गया था... रही बची कसर उनकी इस बात ने पूरी कर दी!

          एकाएक मेरी आंखें छलछला आईं और भरभराए हुए गले से मैने दुकान वाले से एक लस्सी बढ़ाने को कहा... उन्होने अपने पैसे वापस मुट्ठी मे बंद कर लिए और पास ही जमीन पर बैठ गईं...

          अब मुझे अपनी लाचारी का अनुभव हुआ क्योंकि मैं वहां पर मौजूद दुकानदार, अपने दोस्तों और कई अन्य ग्राहकों की वजह से उनको कुर्सी पर बैठने के लिए नहीं कह सका !

          डर था कि कहीं कोई टोक ना दे.....कहीं किसी को एक भीख मांगने वाली बूढ़ी महिला के उनके बराबर में बिठाए जाने पर आपत्ति न हो जाये... लेकिन वो कुर्सी जिसपर मैं बैठा था मुझे काट रही थी......

          लस्सी कुल्लड़ों मे भरकर हम सब मित्रों और बूढ़ी दादी के हाथों मे आते ही मैं अपना कुल्लड़ पकड़कर दादी के पास ही जमीन पर बैठ गया क्योंकि ऐसा करने के लिए तो मैं स्वतंत्र था... इससे किसी को  आपत्ति नही हो सकती थी... हां ! मेरे दोस्तों ने मुझे एक पल को घूरा... लेकिन वो कुछ कहते उससे पहले ही दुकान के मालिक ने आगे बढ़कर दादी को उठाकर कुर्सी पर बैठा दिया और मेरी ओर मुस्कुराते हुए हाथ जोड़कर कहा.......

          "ऊपर बैठ जाइए साहब ! मेरे यहां ग्राहक तो बहुत आते हैं किन्तु इंसान कभी-कभार ही आता है"

          अब सबके हाथों मे लस्सी के कुल्लड़ और होठों पर सहज मुस्कुराहट थी, बस एक वो दादी ही थीं जिनकी आंखों मे तृप्ति के आंसूं... होंठों पर मलाई के कुछ अंश और दिल में सैकड़ों दुआएं थीं!

          न जानें क्यों जब कभी हमें 10-20-50 रुपए किसी भूखे गरीब को देने या उसपर खर्च करने होते हैं तो वो हमें बहुत ज्यादा लगते हैं लेकिन सोचिए कि क्या वो चंद रुपए किसी के मन को तृप्त करने से अधिक कीमती हैं?

          दोस्तों... जब कभी अवसर मिले ऐसे दयापूर्ण और करुणामय काम करते रहें भले ही कोई अभी आपका साथ दे या ना दे , समर्थन करे ना करें... सच मानिए इससे आपको जो आत्मिक सुख मिलेगा वह अमूल्य है ।

गुरुवार, 12 अप्रैल 2018

ऐसे भी समझें "शराब" को...!


          नशे का आदी बना देने वाली शराब जिसकी गिरफ्त में फँसकर देश की एक बडी जनसंख्या अपने धन, स्वास्थ्य व सामाजिक प्रतिष्ठा का निरन्तर नुकसान उठाकर भी मृत्युपर्यंत इसके मकडजाल से बाहर नहीं निकल पाती है, इसके नाम में ही इसकी छुपी हुई इसकी विषाक्तता को यूं भी देखें...

शराब का मतलब...

- शत प्रतिशत
रा - राक्षसों जैसा
- बना देने वाला पेय । 



            और क्या कहते हैं शराब को - मदिरा 

            - मरघट
            दि - दिखाने वाला
            रा - रास्ता


                    शराब को दारू  भी कहते हैं

                    दा - दांव पर
                    रू  - रूह




                              शराब को English में कहते हैं Wine

                              W - Wisdom (ज्ञान)
                               I  -  Income (आमदनी)
                               N - Nature (गुण)
                               E - End (समाप्त)

            
           इसलिए ऐसी विषरुपी शराब से जितना भी बचकर रह सकें उतना अवश्य बचें और अपनी जिंदगी की सार्मथ्य, सम्मान, स्वास्थ्य और सम्पदा को बचाते हुए सुखपूर्वक जीवन गुजारने का प्रयास अवश्य करें ।

ऐतिहासिक शख्सियत...

पागी            फोटो में दिखाई देने वाला जो वृद्ध गड़रिया है    वास्तव में ये एक विलक्षण प्रतिभा का जानकार रहा है जिसे उपनाम मिला था...