शुक्रवार, 31 जनवरी 2020

मंदिर में देवदर्शन के बाद बाहर सीढ़ी पर क्यों बैठते हैं ?


         हिंदू धर्म में यह परम्परा है कि किसी भी मंदिर में दर्शन के बाद बाहर आकर मंदिर की पेढी या ओटले पर दो मिनिट तो बैठना ही चाहिये । क्या आप जानते हैं कि इस परम्परा के पीछे कारण क्या है ?

             वैसे तो आजकल लोग मंदिर के ओटले पर बैठकर अपने घर, व्यापार, राजनीति व ऐसे ही अन्य विषयों की चर्चा करते दिखते हैंकिंतु यह प्राचीन परम्परा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई है । वास्तव में मंदिर के ओटले पर बैठ कर इस एक श्लोक को हर किसी को ही बोलना चाहिए । जिसे आजकल के लोग भूल गए हैं । इस श्लोक का मनन करें और इसे आने वाली पीढ़ी को भी बताएं । यह श्लोक इस प्रकार है-


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अनायासेन मरणम्,
बिना देन्येन जीवनम् ।
देहान्त तव सानिध्यम्
देहि मे परमेश्वरम् ॥

इस श्लोक का अर्थ है-

        अनायासेन मरणम् अर्थात् बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर न पड़ें कष्ट उठाते हुए हमारी मृत्यु ना हो और चलते-फिरते ही हमारे प्राण निकलें ।


        बिना देन्येन जीवनम् : अर्थात् परवशता का जीवन ना हो । कभी किसी के सहारे ना रहाना पड़े । जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है वैसे परवश या बेबस ना हों । ठाकुर जी की कृपा से बिना भीख के ही जीवन बसर हो सकें ।


        देहांते तव सानिध्यम : अर्थात् जब भी मृत्यु हो तब भगवान के सम्मुख हो। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर श्रीकृष्ण जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए थे ऐसे ही उनके दर्शन करते हुए हमारे प्राण निकलें ।


        देहि में परमेशवरम् : हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें दें ।


       अपने ईश्वर से प्रार्थना करते हुऐ उपरोक्त श्र्लोक का पाठ करें । घर, गाड़ीलड़कालड़की पति पत्नी धन, वैभव ऐसी सांसरिक वस्तुएं वहां नहीं मांगना हैक्योंकि यह सब तो आप की पात्रता के हिसाब से भगवान आपको दे ही देते हैं । इसीलिए दर्शन करने के बाद बैठकर यह प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए । ध्यान दें कि यह प्रार्थना हैयाचना नहीं है, क्योंकि याचना सांसारिक पदार्थों के लिए होती है जो भीख सदृष मानी गई है । जबकि प्रार्थना शब्द में 'प्र' का अर्थ होता है विशेषअर्थात् विशिष्ट श्रेष्ठ और 'अर्थना' याने निवेदन । इस प्रकार प्रार्थना का मतलब विशेष निवेदन होता है ।


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            मंदिर में भगवान का दर्शन सदैव खुली आंखों से करना चाहिए, उनकी छबि निहारना चाहिए । कुछ लोग वहां आंखें बंद करके खड़े रहते हैं । वहाँ आंखें क्यों बंद करना हम तो वहाँ दर्शन करने आए हैं भगवान के स्वरूप का उनके श्री चरणों कामुखारविंद का श्रृंगार का अतः देवदर्शऩ में संपूर्ण आनंद लें प्रभु के निज-स्वरूप को अपनी आंखों में भर ले ।


        दर्शन के बाद जब बाहर आकर बैठें  तब नेत्र बंद करके जो दर्शन किये हैं उस स्वरूप का ध्यान करें । मंदिर से बाहर आने के बादपेढी पर बैठ कर स्वयं की आत्मा का ध्यान करें तभी अपने नेत्र बंद करें ।
  विद्वजनों से प्राप्त...  

मंगलवार, 28 जनवरी 2020

ताजमहल और रामसेतु.




प्रेम की सर्वश्रेष्ठ निशानी

        क्लास में जब टीचर ने पूछा कि  दुनिया में प्रेम की निशानी किस जगह को कहा जाता है ?  तब पूरी क्लास एक आवाज़ में बोली- "ताजमहल" !

        लेकिन उन्हीं में से एक छात्र ने जवाब दिया- "रामसेतु" !

        टीचर ने उसे खड़ा किया और  पूछा-  बताओ कैसे ?

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        तब उस  छात्र ने कहा-  "रामसेतु का निर्माण प्रभु श्रीराम ने अपने पत्नी सीता को आततायी रावण के चंगुल से मुक्त करवाकर वापिस लाने के लिए समुद्र पर करवाया ।  किसी दूसरे की जमीन को हथिया कर नहीं और इस रामसेतु का निर्माण करने वाले अपने सभी साथियों को प्रभु श्रीराम ने पूरा सम्मान दिया,  ना कि उनके हाथ काटे । जबकि ताजमहल को बनाने वाले कारीगरों का परिणाम हम सब जानते हैं ।

        टीचर और छात्र सभी स्तब्ध हो गए ।

        वास्तव में हमे भी हमारे इतिहास और पौराणिक कथाओं को नए दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता है ।

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 दुनिया के विचित्र व मशहूर ब्रिज ( सेतु )


गुरुवार, 23 जनवरी 2020

माधुर्य का माध्यम...


      अपने इर्द-गिर्द हम जब-तब संगीत की सुमधुर धुनों को प्रायः अलग-अलग स्थान व अलग-अलग अवसरों पर सुनते रहते हैं और धुनों के इस सैलाब में इंसान को बहा ले जाने की ताकत भी यदि कहीं तलाशी जावे तो वह हिंदी फिल्मों के उन मशहूर गीतों में बहुत ही आसानी से देखी जा सकती है जहाँ हम जीवन की किसी भी मनोदशा से सम्बन्धित मधुरतम गीतों का अपने मूड और अवसर के मुताबिक आसानी से चुनाव कर सकते हैं ।

      चिकित्सा जगत में भी अब इन कर्णप्रिय गीतों के श्रवण द्वारा रोगियों के शीघ्र रिकवरी कर सकने की इस माध्यम की क्षमता को मान्यता मिल चुकी है । किसी डिप्रेशन (अवसाद) से ग्रस्त व्यक्ति के उपचार में भी दवाई के समानान्तर इन गीतों की मदद जब ली जाती है तो रुग्ण व्यक्ति को अधिक तेजी से सामान्य जीवन में लौटने में मदद मिलती है । कई हॉस्पीटल्स में रोगियों से भरे-पूरे वार्ड में धीमी गति से इन मधुर गीतों की धुनों का प्रसारण रोगियों की बेहतर रिकवरी के लिये प्रारम्भ हो चुका है ।

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      निःसंदेह फिल्मों की इस महत्वपूर्ण देन के लिये हम भारतीय फिल्मों को इसका पूरा श्रेय दे सकते हैं क्योंकि विदेशों में बनने वाली दूसरी सबसे प्रचलित भाषा अंग्रेजी की फिल्मों में प्रायः ऐसे गीतों की जीवंत मौजूदगी देखने में नहीं आती जबकि भारत में इस विधा को पोषित-पल्लवित करने के लिये एक से बढकर एक गीतकार, संगीतकार व गायक-गायिकाओं ने अपना पूरा जीवन व योग्यता इसके माधुर्य को आगे बढाने के लिये समर्पित की है ।

      हिंदी फिल्म संगीत की मधुरता के आकर्षण से विदेशों में मौजूद अलग-अलग भाषाओं वाले देशों के नागरिक भी अछूते नहीं रहे हैं । उनके अपने सामूहिक आयोजनों में भारतीय फिल्मों के यही लोकप्रिय गीत उनकी अपनी शैली में उन्हीं के द्वारा गाते-बजाते देखने में आते रहते हैं । हमारी सरहदों की सुरक्षा के लिये अपनी जान हथेली पर रखकर ड्यूटी निभाने वाले हमारे वीर सैनिकों के लिये भी मधुर संगीत का यही माध्यम उनके मनोरंजन का सर्वाधिक पसंदीदा माध्यम  साबित होता है ।

      देश के सर्वाधिक महत्वपूर्ण व संजीदा पद पर आसीन हमारे नौसेनाध्यक्ष द्वारा सार्वजनिक मंच से प्रस्तुत किये गये कार्यक्रम का एक वीडिओ क्लिप भी आप अवश्य देखें, जिसमें वे इस मधुर गीत का अपने ही अन्दाज में आनंद लेते दिखाई दे रहे हैं ।

     

      इतने महत्वपूर्ण और संवेदनशील पद के तनाव से संगीत के ये पल इन्हें न सिर्फ सुकून देने वाले होते हैं बल्कि आनंद व मस्ती के मूड में आप अरब देशों के इन नागरिकों को भी भारतीय फिल्मी गीतों की तान पर मस्ती में झूमते गाते अब नीचे के इस वीडिओ में भी देखें...
      
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      तो अब जब भी कभी आप अच्छा महसूस करने में कोई कमी महसूस करें या किसी प्रकार का तनाव महसूस करें तो सुमधुर संगीत के इस माध्यम का अपने मोबाईल, लेपटॉप या पेऩड्राईव द्वारा अपने पसंदीदा फिल्मी गीत-संगीत का आनंद लेने की कोशिश करें । निश्चित रुप से कुछ ही देर में आप अपने नैराश्य के उस मूड से स्वयं को बाहर पा सकेंगे ।


मंगलवार, 21 जनवरी 2020

जीवन का फंडा...


      15-16 वर्ष की उम्र के एक बालक से उसके पिता ने एक पुराना कपड़ा दिखाते हुए उसकी कीमत पूछी, बच्चे ने अंदाज से उसकी कीमत 100/-रु बताई । ठीक है, अब तुम इसे 200/-रु. में बेचकर दिखाओ, कहते हुए उसके पिता ने वो कपडा उस बच्चे को दे दिया । उस बालक ने तब उस कपड़े को व्यवस्थित रुप से साफ़ कर अच्छी तरह से तह करके रखा और अगले दिन उसे लेकर वह रेलवे स्टेशन गया, जहां कई घंटों की मेहनत के बाद वह कपड़ा दो सौ रु में उसने बेच दिया ।


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      कुछ दिन बाद उसके पिता ने फिर उसे वैसा ही दूसरा कपड़ा दिया और अब उसे 500/-रु में बेचने को कहा । तब उस बालक ने अपने एक पेंटर दोस्त की मदद से उस कपड़े को रंगवाकर उस पर सुन्दर चित्र बनवाया और एक गुलज़ार बाजार में उसे बेचने के लिए पहुंच गया । एक व्यक्ति ने वह कपड़ा 500/-रु में खरीदने के साथ ही उसे 100/-रु ईनाम भी दिया ।

       जब बच्चा वापस आया तो उसके पिता ने फिर एक कपड़ा हाथ में दे दिया और उसे दो हज़ार रु में बेचने को कहा । इस बार उस बच्चे को पता था कि इस कपड़े की इतनी ज्यादा कीमत कैसे मिल सकती है । उसके शहर में  फिल्म की शूटिंग के लिए एक नामी कलाकार आई थीं । वह बच्चा जुगत भिडाकर उस कलाकार के पास पहुंच गया और उसी कपड़े पर उनके ऑटोग्राफ ले आया । उसके बाद उस बालक ने उस कपड़े की बोली लगाई । बोली दो हज़ार रु. से शुरू हुई और एक कद्रदान ने वह कपड़ा 9000/-रु में खरीद लिया ।

       रकम लेकर वह बच्चा जब घर पहुंचा तो खुशी से पिता की आंखों में आंसू आ गए । उन्होंने तब अपने बेटे से पूछा कि इतने दिनों में इन कपड़ों को बेचते हुए तुमने क्या सीखा ? तब बच्चा बोला -  पहले खुद को समझो, अपनी क्षमता को पहचानो और फिर पूरे मनोयोग से मन्ज़िल की और बढ़ जाओ, क्योकि जहां चाह होती है, वहाँ राह भी निकल ही आती है ।'

       पिता बोले कि तुम बिलकुल सही हो, मगर मेरा उद्देश्य तुम्हें यह समझाना भी था कि कपड़ा मैला होने पर इसकी कीमत बढ़ाने के लिए उसे धो कर साफ़ करना पड़ा, फिर और ज्यादा कीमत तब मिली जब एक पेंटर ने उस पर अपना हुनर चस्पा कर दिया और उससे भी ज्यादा कीमत मिली जब एक नामी कलाकार ने उस पर अपने नाम की मोहर लगा दी ।

      तो विचार करें कि कोई भी वो काम जिसमें हमारी रुचि है या वो जो हम कर रहे हैं उसे कैसे इतना उपयोगी बनाएं कि उससे सम्बन्धित व्यक्ति हमें अपने उस काम के एवज में ज्यादा से ज्यादा कीमत प्रसन्नतापूर्वक दे सके । निश्चय ही यदि इस दिशा में ईमानदार प्रयास हमारे द्वारा किया जा सके तो यह बिल्कुल सम्भव है । 

और अब इस नन्हे कलाकार से भी मिल लें...

रविवार, 19 जनवरी 2020

विचित्र किंतु सत्य...


      12-13 वर्ष की खेलने-कूदने की उम्र में खेल-खेल में फातिमा अपने अब्बू के ही यहां प्रेग्नेंट हो गई, तो तुरन्त ही उसके अब्बूजान ने पंक्चर पकाने वाले अब्दुल से उसका निकाह करा दियाकुछ साल बाद अब्दुल ने गुस्से में आकर फातिमा को ट्रिपल तलाक दे दियाचतुर  मौलाना ने शरियत का हवाला देकर फातिमा से हलाला कर उसे अपनी हवस का शिकार बनाया फिर कुछ समय बाद मौलाना ने फातिमा को ट्रिपल तलाक़ दे दियाहलाला कर लौटी फातिमा को अब्दुल ने फिर शादी कर अपनी बीवी बना लिया फिर कुछ दिनों बाद दोबारा अब्दुल ने ट्रिपल तलाक दे दिया, फिर परेशान फातिमा ने मुर्गीवाले रहमान से दूसरी शादी कर ली, लेकिन कुछ समय में मुर्गीवाला रहमान मर गयाफातिमा अब भंगार वाले फखरुद्दीन की तीसरी बीवी बनकर रहती है  और अब तक फातिमा के सब मिलाकर 15 बच्चे मौजूद हैं !

     तो अब आखिर फातिमा के बच्चें किसे अपना अब्बू साबित करेंगेकौनसे बाप का वे आधार कार्ड दिखाएंगे अकेली फातिमा के 15 बच्चों के सामने बाप किसको बताये ये बड़ा सवाल हैअब्दुल को, मौलाना कोरेहमान कोफखरुद्दीन को या फिर और किसी आदमी को  ?

      आप ही बताएं- कोई आसान है क्या फातिमा के बच्चों के लिये....?  और अब सरकार NPR और NRC के द्वारा इन्हें अपना वजूद साबित करने के लिये कह रही है । इसीलिए वर्तमान अब्दुल आज फिर जोर-जबर्दस्तीपूर्वक संविधान को बचाने निकले हैं ।


नजर एक... नजरिये अनेक.






अन्न का सदुपयोग



गुरुवार, 16 जनवरी 2020

मनुष्य ही नहीं जानवरों में भी प्रभुभक्ति के भाव..


        किसी मस्जिद में एक नाग एक बिल में रहता था । प्रतिदिन पांच बार नमाज सुनताप्रतिदिन की तक़रीर भी ध्यान लगाकर सुनता था । एक दिन उसका मन हुआ कि नमाज की जब इतनी महिमा है तो एक दिन मैं भी नमाज पढ़ूं, शायद मुझे भी जन्नत मिल जाए ।

       यह सोचते हुए एक दिन नमाज के समय बाहर निकलकर नमाजियों की लाईन में लगने चल पड़ा । पर जैसे ही नमाजियों ने वहाँ नाग देखा तो डंडे लेकर उसे मारने दौड़ पडे, अब नाग आगे-आगे और नमाजी डंडे लेकर पीछे-पीछे भागे

       इधर भागते-भागते नाग को एक पुराना सा मंदिर दिखा । वो वहीं घुसकर शिवलिंग से लिपट गया और उसकी जान बच गई । इधर भक्तों ने जब शिवलिंग पर नाग लिपटा देखा कोतूहल सा मच गया, वहाँ भी भीड़ जमा हो गयी लेकिन इस भीड में लोग उसकी आरती-पूजा करने लगे और उसे ला-लाकर दूध पिलाने लगे ।
       अब नाग सोच रहा था कि मैं भी कहाँ फंसा पड़ा थामैं तो नमाज पढ़ना चाहता था पर उन्होंने लट्ठ लेकर दौड़ा दिया और मुझे पत्थर मारने लगे । यहाँ इन पत्थर के भोलेनाथ की शरण में दो घड़ी क्या आया स्वयं ही नाग से शेषनाग हो गया । शायद यही अंतर है इस्लाम और सनातन धर्म मे...


इधर देखें इन वानर राज को तल्लीनता पूर्वक अपनी ईषभक्ति में-


     और यहाँ यह U.P. का एक छोटा सा शिव मंदिर है जहाँ एक निश्चित समय पर प्रतिदिन एक बैल (नंदी) आकर परिक्रमा करता है और बिना किसी गिनती या जपमाला के किसी मशीन  की गणना के समान पूरी 108 प्रदक्षिणा यह नंदी लगाता है, जिन लोगों ने इसकी गिनती की हैं वे आश्चर्यचकित हैं...



मंगलवार, 14 जनवरी 2020

रोचक मकर संक्रान्ति...



      जान लीजिये कि मकर संक्रान्ति पर्व अब 15 जनवरी को क्यों आने लगा है ?  जबकि यह वर्ष 2080 तक अब हर वर्ष 15 जनवरी को ही आता रहेगा । विगत 72 वर्षों से प्रति वर्ष मकर संक्रांति हम 14 जनवरी को ही देखते आ रहे हैं । जबकि 2081 से आगे के 72 वर्षों तक अर्थात सन् 2153  तक यही मकर संक्रान्ति 16  जनवरी को आती रहेगी ।

       ज्ञातव्य है कि- सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश (संक्रमण) का दिन मकर संक्रांति के रूप में जाना जाता है । इस दिन से  मिथुन राशि तक में सूर्य के बने रहने पर सूर्य उत्तरायण का तथा कर्क से धनु राशि में सूर्य के बने रहने पर इसे दक्षिणायन का माना जाता है ।

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        सूर्य का धनु से मकर राशि में संक्रमण प्रति वर्ष लगभग 20 मिनिट विलम्ब से होता है । स्थूल गणना के आधार पर तीन वर्षों में यह अंतर एक घंटे का तथा  72  वर्षो में पूरे 24 घंटे का हो जाता है । यही कारण हैकि अंग्रेजी तारीखों के मान से  मकर-संक्रांति का पर्व 72 वषों के अंतराल के बाद एक-एक तारीख आगे बढ़ता रहता है । यदि हम बहुत पहले कि बात करें तो लगभग 1700 वर्ष पूर्व यही मकर संक्रांति 22 दिसम्बर को मनाई जाती थी ।

         अतः यह धारणा पूर्णतः भ्रामक है कि मकर संक्रांति का पर्व  14 जनवरी को ही आता है । लेकिन चूंकि 72 वर्ष की इस अवधि में तकरीबन इंसानी जीवन सिमट जाता है और हममें से लगभग सभी ने इसे 14 जनवरी को ही अनिवार्य रुप से आते देखा है जबकि बाकि किसी भी पर्व-त्यौंहारों में तारीख का इतना फिक्सेशन हमने कभी नहीं देखा इसलिये हमें लगता रहा है कि मकर संक्रान्ति तो 14 जनवरी को ही फिक्स आती है, जबकि यह परिवर्तन इस रुप में परिवर्तित होता रहा है और वर्तमान जानकारी के अनुसार आगे भी संभवतः होता ही रहेगा ।

बुरी नजर से बचाव के लिये नींबू-मिर्ची का टोटका अब 
सिर्फ घर-दुकान या ट्रकों तक ही सीमित नहीं रह गया है...

संक्रति पर्व पर देखिये विश्वस्तरीय पतंग फेस्टिवल...



सोमवार, 13 जनवरी 2020

इस गुप्त नवरात्री में कीजिये देवी को प्रसन्न


            हिन्दू धर्म में नवरात्र मां दुर्गा की साधना के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं। नवरात्र के दौरान साधक विभिन्न तंत्र विद्याएं सीखने के लिए मां भगवती की विशेष पूजा करते हैं। तंत्र साधना आदि के लिए गुप्त नवरात्र बेहद विशेष माने जाते हैं। आषाढ़ और माघ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली नवरात्र को गुप्त नवरात्र कहा जाता है। इस नवरात्रि के बारे में बहुत ही कम लोगों को जानकारी होती है।

            शिवपुराण के अनुसार पूर्वकाल में राक्षस दुर्ग ने ब्रह्मा को तप से प्रसन्न कर चारों वेद प्राप्त कर लिए। तब वह उपद्रव करने लगा। वेदों के नष्ट हो जाने से देव-ब्राह्मण पथ भ्रष्ट हो गए, जिससे पृथ्वी पर वर्षों तक अनावृष्टि रही।पृथ्वी पर रूद्र, वरुण, यम आदि का प्रकोप बढ़ने लगता है। इन विपत्तियों से बचाव के लिए गुप्त नवरात्र में मां दुर्गा की उपासना की जाती है ।


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            सतयुग में चैत्र नवरात्र, त्रेता में आषाढ़ नवरात्र, द्वापर में माघ, कलयुग में आश्विन की साधना-उपासना का विशेष महत्व रहता है। मार्कंडेय पुराण में इन चारों नवरात्रों में शक्ति के साथ-साथ इष्ट की आराधना का भी विशेष महत्व है । 

            देवताओं ने मां पराम्बा की शरण में जाकर दुर्ग का वध करने का निवेदन किया। मां ने अपने शरीर से काली, तारा, छिन्नमस्ता, श्रीविद्या, भुवनेश्वरी, भैरवी, बगला, धूमावती, त्रिपुरसुंदरी और मातंगी नाम वाली दस महाविद्याओं को प्रकट कर दुर्ग का वध किया। दस महाविद्याओं की साधना के लिए तभी से गुप्त नवरात्र मनाया जाने लगा।

            गुप्त नवरात्रि विशेष तौर पर गुप्त सिद्धियां पाने का समय है साधक इन दोनों गुप्त नवरात्रि (माघ तथा आषाढ़) में विशेष साधना करते हैं तथा चमत्कारिक शक्तियां प्राप्त करते हैं ।

            "ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी ।

        दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते “सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित: ।

            मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय: ॥”

           इस नवरात्र में देवी साधक और भक्त--- 'ऊं ऐं हीं क्लीं चामुण्डाये विच्चे नम:' मंत्र जाप करें।

             मां काली के उपासक---- 'ऊं ऐं महाकालाये नम:' मंत्र का जाप करें।

            व्यापारी लोग----'ऊं हीं महालक्ष्मये नम:' मंत्र का जाप करें।

            विद्यार्थी---- 'ऊं क्लीं महासरस्वतये नम:' मंत्र जपें।
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गुप्त नवरात्र 2016

            आषाढ़ नवरात्र गुप्त नवरात्रों के नाम से भी जाने जाते हैं. आषाढ़ महीने यानी जून और जुलाई  माह में पड़ने के कारण इन नवरात्रों को आषाढ़ नवरात्र कहा जाता है, हालाँकि देश के अधिकतर भाग में गुप्त नवरात्रों के बारे में लोग नहीं जानते हैं. उत्तरी भारत जैसे हिमाचल प्रदेश, पंजाब , हरयाणा, उत्तराखंड के आस पास के प्रदेशों में गुप्त नवरात्रों  में माँ भगवती की पूजा की जाती है. माँ भगवती  के सभी 9 रूपों की पूजा नवरात्रों के भिन्न – भिन्न दिन की जाती है , अतः आइये देखते हैं  इन दिनों में किस देवी की पूजा  कब की जानी चाहिए---

            5 जुलाई (मंगलवार) 2016 : घट स्थापन एवं माँ शैलपुत्री पूजा

            6 जुलाई (बुधवार) 2016 : माँ ब्रह्मचारिणी पूजा

            7 जुलाई (बृहस्पतिवार) 2016 : माँ चंद्रघंटा पूजा

            8 जुलाई (शुक्रवार) 2016: माँ कुष्मांडा पूजा

            9 जुलाई (शनिवार) 2016: माँ स्कंदमाता पूजा

            10 जुलाई (रविवार)  2016: : माँ कात्यायनी पूजा

            11 जुलाई (सोमवार)  2016:  माँ कालरात्रि पूजा

            12 जुलाई(मंगलवार) 2016 : माँ महागौरी पूजा, दुर्गा अष्टमी

            13 जुलाई (बुधवार) 2016 : माँ सिद्धिदात्री

            14 जुलाई (बृहस्पतिवार)  2016: नवरात्री पारण
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गुप्त नवरात्र पूजा विधि---

            मान्यतानुसार गुप्त नवरात्र के दौरान अन्य नवरात्रों की तरह ही पूजा करनी चाहिए। नौ दिनों के उपवास का संकल्प लेते हुए प्रतिप्रदा यानि पहले दिन घटस्थापना करनी चाहिए। घटस्थापना के बाद प्रतिदिन सुबह और शाम के समय मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। अष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन के साथ नवरात्र व्रत का उद्यापन करना चाहिए।

गुप्त नवरात्री में सिद्धि के लिए गुप्त स्थान या सिद्ध श्मशान-
            यह साधनाएं बहुत ही गुप्त स्थान पर या किसी सिद्ध श्मशान में की जाती है । दुनियां में सिर्फ चार श्मशान घाट ही ऐसे हैं जहां तंत्र क्रियाओं का परिणाम बहुत जल्दी मिलता है। ये हैं तारापीठ का श्मशान (पश्चिम बंगाल), कामाख्या पीठ (असम) का श्मशान, त्रयंबकेश्वर (नासिक) और उज्जैन स्थित विक्रांत भैरव या चक्रतीर्थ श्मशान ।

            गुप्त नवरात्रि में यहां दूर-दूर से साधक गुप्त साधनाएं करने आते हैं। नवरात्रों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्तियों में वृद्धि करने के लिए अनेक प्रकार के उपवास, संयम, नियम, भजन, पूजन योग साधना आदि करते हैं।
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गुप्त नवरात्रि का महत्त्व ---

            देवी भागवत के अनुसार जिस तरह वर्ष में चार बार नवरात्र आते हैं और जिस प्रकार नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है, ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है । कहा जाता है कि मां के नौ रूपों की भक्ति करने से हर मनोकामना पूरी होती है। नौ शक्तियों के मिलन को ही नवरात्रि कहते हैं। देवी पुराण के अनुसार एक वर्ष में 4 माह नवरात्रि के लिए निश्चित हैं।

            मानव के समस्त रोग-दोष व कष्टों के निवारण के लिए गुप्त नवरात्र से बढ़कर कोई साधनाकाल नहीं हैं। श्री, वर्चस्व, आयु, आरोग्य और धन प्राप्ति के साथ ही शत्रु संहार के लिए गुप्त नवरात्र में अनेक प्रकार के अनुष्ठान व व्रत-उपवास के विधान शास्त्रों में मिलते हैं। इन अनुष्ठानों के प्रभाव से मानव को सहज ही सुख व अक्षय ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। ‘दुर्गावरिवस्या’ नामक ग्रंथ में स्पष्ट लिखा है कि साल में दो बार आने वाले गुप्त नवरात्रों में माघ में पड़ने वाले गुप्त नवरात्र मानव को न केवल आध्यात्मिक बल ही प्रदान करते हैं, बल्कि इन दिनों में संयम-नियम व श्रद्धा के साथ माता दुर्गा की उपासना करने वाले व्यक्ति को अनेक सुख व साम्राज्य भी प्राप्त होते हैं। ‘शिवसंहिता’ के अनुसार ये नवरात्र भगवान शंकर और आदिशक्ति मां पार्वती की उपासना के लिए भी श्रेष्ठ हैं। गुप्त नवरात्रों के साधनाकाल में मां शक्ति का जप, तप, ध्यान करने से जीवन में आ रही सभी बाधाएं नष्ट होने लगती हैं।

            गुप्त नवरात्रि विशेषकर तांत्रिक क्रियाएं, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्त्व रखती है। इस दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं। इस दौरान लोग लंबी साधना कर दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं।गुप्त नवरात्र में दशमहाविद्याओं की साधना कर ऋषि विश्वामित्र अद्भुत शक्तियों के स्वामी बन गए। उनकी सिद्धियों की प्रबलता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक नई सृष्टि की रचना तक कर डाली थी। इसी तरह, लंकापति रावण के पुत्र मेघनाद ने अतुलनीय शक्तियां प्राप्त करने के लिए गुप्त नवरात्रों में साधना की थी। शुक्राचार्य ने मेघनाद को परामर्श दिया था कि गुप्त नवरात्रों में अपनी कुलदेवी निकुम्बाला की साधना करके वह अजेय बनाने वाली शक्तियों का स्वामी बन सकता है ||

            गुप्त व चमत्कारिक शक्तियां प्राप्त करने का यह श्रेष्ठ अवसर होता है। धार्मिक दृष्टि से हम सभी जानते हैं कि नवरात्र देवी स्मरण से शक्ति साधना की शुभ घड़ी है। दरअसल, इस शक्ति साधना के पीछे छुपा व्यावहारिक पक्ष यह है कि नवरात्र का समय मौसम के बदलाव का होता है। आयुर्वेद के मुताबिक इस बदलाव से जहां शरीर में वात, पित्त, कफ में दोष पैदा होते हैं, वहीं बाहरी वातावरण में रोगाणु। जो अनेक बीमारियों का कारण बनते हैं। सुखी-स्वस्थ जीवन के लिये इनसे बचाव बहुत जरूरी है।  नवरात्र के विशेष काल में देवी उपासना के माध्यम से खान-पान, रहन-सहन और देव स्मरण में अपनाने गए संयम और अनुशासन तन व मन को शक्ति और ऊर्जा देते हैं। जिससे इंसान निरोगी होकर लंबी आयु और सुख प्राप्त करता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार गुप्त नवरात्र में प्रमुख रूप से भगवान शंकर व देवी शक्ति की आराधना की जाती है। देवी दुर्गा शक्ति का साक्षात स्वरूप है। दुर्गा शक्ति में दमन का भाव भी जुड़ा है। यह दमन या अंत होता है शत्रु रूपी दुर्गुण, दुर्जनता, दोष, रोग या विकारों का। ये सभी जीवन में अड़चनें पैदा कर सुख-चैन छीन लेते हैं। यही कारण है कि देवी दुर्गा के कुछ खास और शक्तिशाली मंत्रों का देवी उपासना के विशेष काल में जाप शत्रु, रोग, दरिद्रता रूपी भय बाधा का नाश करने वाला माना गया है ।

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अमृतफल आंवले की उपयोगिता व औषधीय गुण...

सभी’नवरात्र’ शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तक किए जाने वाले पूजन, जाप और उपवास का प्रतीक है- ‘नव शक्ति समायुक्तां नवरात्रं तदुच्यते’। देवी पुराण के अनुसार एक वर्ष में चार माह नवरात्र के लिए निश्चित हैं। नवरात्र के नौ दिनों तक समूचा परिवेश श्रद्धा व भक्ति, संगीत के रंग से सराबोर हो उठता है। धार्मिक आस्था के साथ नवरात्र भक्तों को एकता, सौहार्द, भाईचारे के सूत्र में बांधकर उनमें सद्भावना पैदा करता है।

गुप्त नवरात्रि की प्रमुख देवियां---

            गुप्त नवरात्र के दौरान कई साधक महाविद्या (तंत्र साधना) के लिए मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी की पूजा करते हैं ।


ऐतिहासिक शख्सियत...

पागी            फोटो में दिखाई देने वाला जो वृद्ध गड़रिया है    वास्तव में ये एक विलक्षण प्रतिभा का जानकार रहा है जिसे उपनाम मिला था...