शुक्रवार, 31 जनवरी 2020

मंदिर में देवदर्शन के बाद बाहर सीढ़ी पर क्यों बैठते हैं ?


         हिंदू धर्म में यह परम्परा है कि किसी भी मंदिर में दर्शन के बाद बाहर आकर मंदिर की पेढी या ओटले पर दो मिनिट तो बैठना ही चाहिये । क्या आप जानते हैं कि इस परम्परा के पीछे कारण क्या है ?

             वैसे तो आजकल लोग मंदिर के ओटले पर बैठकर अपने घर, व्यापार, राजनीति व ऐसे ही अन्य विषयों की चर्चा करते दिखते हैंकिंतु यह प्राचीन परम्परा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई है । वास्तव में मंदिर के ओटले पर बैठ कर इस एक श्लोक को हर किसी को ही बोलना चाहिए । जिसे आजकल के लोग भूल गए हैं । इस श्लोक का मनन करें और इसे आने वाली पीढ़ी को भी बताएं । यह श्लोक इस प्रकार है-


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अनायासेन मरणम्,
बिना देन्येन जीवनम् ।
देहान्त तव सानिध्यम्
देहि मे परमेश्वरम् ॥

इस श्लोक का अर्थ है-

        अनायासेन मरणम् अर्थात् बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर न पड़ें कष्ट उठाते हुए हमारी मृत्यु ना हो और चलते-फिरते ही हमारे प्राण निकलें ।


        बिना देन्येन जीवनम् : अर्थात् परवशता का जीवन ना हो । कभी किसी के सहारे ना रहाना पड़े । जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है वैसे परवश या बेबस ना हों । ठाकुर जी की कृपा से बिना भीख के ही जीवन बसर हो सकें ।


        देहांते तव सानिध्यम : अर्थात् जब भी मृत्यु हो तब भगवान के सम्मुख हो। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर श्रीकृष्ण जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए थे ऐसे ही उनके दर्शन करते हुए हमारे प्राण निकलें ।


        देहि में परमेशवरम् : हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें दें ।


       अपने ईश्वर से प्रार्थना करते हुऐ उपरोक्त श्र्लोक का पाठ करें । घर, गाड़ीलड़कालड़की पति पत्नी धन, वैभव ऐसी सांसरिक वस्तुएं वहां नहीं मांगना हैक्योंकि यह सब तो आप की पात्रता के हिसाब से भगवान आपको दे ही देते हैं । इसीलिए दर्शन करने के बाद बैठकर यह प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए । ध्यान दें कि यह प्रार्थना हैयाचना नहीं है, क्योंकि याचना सांसारिक पदार्थों के लिए होती है जो भीख सदृष मानी गई है । जबकि प्रार्थना शब्द में 'प्र' का अर्थ होता है विशेषअर्थात् विशिष्ट श्रेष्ठ और 'अर्थना' याने निवेदन । इस प्रकार प्रार्थना का मतलब विशेष निवेदन होता है ।


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            मंदिर में भगवान का दर्शन सदैव खुली आंखों से करना चाहिए, उनकी छबि निहारना चाहिए । कुछ लोग वहां आंखें बंद करके खड़े रहते हैं । वहाँ आंखें क्यों बंद करना हम तो वहाँ दर्शन करने आए हैं भगवान के स्वरूप का उनके श्री चरणों कामुखारविंद का श्रृंगार का अतः देवदर्शऩ में संपूर्ण आनंद लें प्रभु के निज-स्वरूप को अपनी आंखों में भर ले ।


        दर्शन के बाद जब बाहर आकर बैठें  तब नेत्र बंद करके जो दर्शन किये हैं उस स्वरूप का ध्यान करें । मंदिर से बाहर आने के बादपेढी पर बैठ कर स्वयं की आत्मा का ध्यान करें तभी अपने नेत्र बंद करें ।
  विद्वजनों से प्राप्त...  

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