जान लीजिये कि मकर
संक्रान्ति पर्व अब 15 जनवरी को क्यों आने लगा
है ? जबकि यह वर्ष 2080 तक अब हर वर्ष 15 जनवरी को ही आता
रहेगा । विगत 72 वर्षों से प्रति वर्ष मकर संक्रांति हम 14 जनवरी को ही
देखते आ रहे हैं । जबकि 2081 से आगे के 72 वर्षों तक
अर्थात सन् 2153 तक यही मकर संक्रान्ति 16 जनवरी को आती
रहेगी ।
ज्ञातव्य
है कि- सूर्य के धनु राशि
से मकर राशि में प्रवेश (संक्रमण) का दिन मकर संक्रांति के रूप में जाना जाता है ।
इस दिन से मिथुन राशि तक में सूर्य के बने रहने पर सूर्य
उत्तरायण का तथा कर्क से धनु राशि में सूर्य के बने रहने पर इसे दक्षिणायन का माना
जाता है ।
सूर्य
का धनु से मकर राशि में संक्रमण प्रति वर्ष लगभग 20 मिनिट विलम्ब से होता है
। स्थूल गणना के आधार पर तीन वर्षों में यह अंतर एक घंटे का तथा 72 वर्षो में पूरे 24 घंटे का हो जाता
है । यही कारण है, कि अंग्रेजी
तारीखों के मान से मकर-संक्रांति का पर्व 72 वषों के अंतराल
के बाद एक-एक तारीख आगे बढ़ता
रहता है । यदि हम बहुत पहले कि बात करें तो लगभग 1700 वर्ष पूर्व यही मकर संक्रांति
22 दिसम्बर को मनाई जाती थी ।
अतः यह धारणा पूर्णतः भ्रामक है कि मकर संक्रांति का पर्व 14 जनवरी को ही आता है । लेकिन चूंकि 72 वर्ष की इस अवधि में तकरीबन इंसानी जीवन सिमट जाता है और हममें से लगभग सभी ने इसे 14 जनवरी को ही अनिवार्य रुप से आते देखा है जबकि बाकि किसी भी पर्व-त्यौंहारों में तारीख का इतना फिक्सेशन हमने कभी नहीं देखा इसलिये हमें लगता रहा है कि मकर संक्रान्ति तो 14 जनवरी को ही फिक्स आती है, जबकि यह परिवर्तन इस रुप में परिवर्तित होता रहा है और वर्तमान जानकारी के अनुसार आगे भी संभवतः होता ही रहेगा ।
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अतः यह धारणा पूर्णतः भ्रामक है कि मकर संक्रांति का पर्व 14 जनवरी को ही आता है । लेकिन चूंकि 72 वर्ष की इस अवधि में तकरीबन इंसानी जीवन सिमट जाता है और हममें से लगभग सभी ने इसे 14 जनवरी को ही अनिवार्य रुप से आते देखा है जबकि बाकि किसी भी पर्व-त्यौंहारों में तारीख का इतना फिक्सेशन हमने कभी नहीं देखा इसलिये हमें लगता रहा है कि मकर संक्रान्ति तो 14 जनवरी को ही फिक्स आती है, जबकि यह परिवर्तन इस रुप में परिवर्तित होता रहा है और वर्तमान जानकारी के अनुसार आगे भी संभवतः होता ही रहेगा ।
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