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| लक्ष्य पर ध्यान रखें | 
लक्ष्य पर ध्यान
      बात चाहे अपने
आस-पास की हो या दूरदराज के किसी क्षेत्र अथवा देश विदेश की, लेकिन जीवन में किसी उल्लेखनीय व्यक्ति की मुख्य
उपलब्धियों तक पहुंचने की यात्रा को यदि ध्यान से देखा-समझा जावे तो यह बात अवश्य
सामने आएगी कि उन्होंने कुछ भी हासिल करने के लिये पहले अपना गोल सेट किया, अपने
लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित किया और फिर अपनी सारी ताकत अपने उस लक्ष्य को पूर्ण
करने के प्रयास में लगा दी और तब वे निर्विवाद रुप से अपने लक्ष्य तक बिना किसी
बाधा के पहुंच पाए ।
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      यह कतई जरुरी नहीं
कि कोई शख्स किसी बडे अथवा बहुत बडे लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये प्रयासरत हो
तभी यह नियम उपयोगी होता हो, बल्कि छोटे-छोटे लक्ष्य भी तब तक हासिल नहीं किये जा
सकते जब तक हमारा अपने लक्ष्य पर ध्यान तब तक न बना रहे जब तक कि हम उसे हासिल न
कर लें । अपने इस प्रयास में सामने आने वाली आपकी आलोचना भी आपके रास्ते में बाधक
नहीं बनना चाहिए ।
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| लक्ष्य पर ध्यान से एकाग्रता वृद्धि. | 
लक्ष्य पर ध्यान से प्राप्त उपलब्धि-
      स्वामी विवेकानंद के
जीवन की बेशुमार उपलब्धियों से शायद ही कोई अनभिज्ञ रहा हो आईये उनका जीवन-दर्शन
इस उदाहरण से समझने का प्रयास करें- एक बार स्वामी विवेकानंद रेल से कही जा रहे थे
। जिस कोच में वे यात्रा कर रहे थे, उसी कोच में कुछ अंग्रेज यात्री भी थे । उन अंग्रेजों को साधुओं से
बहुत चिढ़ थी और वे अपने साथ भगवा वेशधारी यात्री को देख साधुओं की लगातार निंदा कर रहे थे और साथ वाले साधु यात्री याने
स्वामी विवेकानंद को भी वे गालियां दे रहे थे । वे समझ रहे थे कि ये साधु तो
अंग्रेजी नहीं जानते, इसलिए उन अंग्रेजों की बातों को नहीं समझ पावेंगे और इसी आधार पर उन अंग्रेजों ने आपसी बातचीत में साधुओं को कई बार भला-बुरा कहा । हालांकि
उन दिनों हकीकत यह थी भी कि अंग्रेजी जानने वाले साधु प्रायः होते भी नहीं थे ।
      रास्ते में एक बड़ा
स्टेशन आया । उस स्टेशन पर विवेकानंद के स्वागत में हजारों लोग उपस्थित थे,  जिनमे बडे-बडे विद्वान् एवं
अधिकारी भी मौजूद थे । वहाँ उपस्थित लोगों को सम्बोधित करने के बाद अंग्रेजी में
पूछे गए प्रश्नों के उत्तर स्वामीजी अंग्रेजी में ही दे रहे थे । उन्हें इतनी
अच्छी अंग्रेजी बोलते देख उन अंग्रेज यात्रियों को सांप सूंघ गया, जो रेल में उनकी बुराई कर रहे थे । अवसर मिलने पर वे विवेकानंद के पास
आये और उनसे नम्रतापूर्वक पूछा- आपने हम लोगों की बातें सुनी । Sorry, आपको बहुत बुरा लगा होगा ?
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     तब स्वामीजी ने सहज शालीनता से कहा-  “मेरा
मस्तिष्क अपने ही कार्यों में इतना व्यस्त था कि आप लोगों की बात सुनी तो भी उन
पर ध्यान देने और उनका बुरा मानने का मुझे अवसर ही नहीं मिला ।”  स्वामीजी की जवाब सुनकर उन अंग्रेजो
का न सिर्फ शर्म से सिर झुक गया बल्कि उन्होंने भी स्वामीजी के चरणों में झुककर
उनकी शिष्यता स्वीकार कर ली ।
      इसलिये यदि जीवन में कुछ भी करने या पाने की चाह हमारे अंदर मौजूद हो
तो हमें सदैव अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित रखना चाहिए ।
कला के क्षेत्र में लक्ष्य पर ध्यान की उपयोगिता-
      लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित कर चलने वाले इन कलाकारों को भी आप नीचे के
इस वीडिओ में अवश्य देखिये जिन्होंने पशु-पक्षी व सडकों पर चलते वाहनों को सिर्फ
अपनी आवाज के द्वारा कितने जीवंत अंदाज में यहाँ प्रस्तुत कर दिखाया है-
 
 
 
 
 
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