मंगलवार, 19 अप्रैल 2016

जीवन का रंगमंच...!

        एक चित्रकार था, जो अद्धभुत चित्र बनाता था । लोग उसकी चित्रकारी की काफी तारीफ़ करते थे । एक दिन कृष्ण मंदिर के भक्तों ने उनसे कृष्ण और कंस का एक चित्र बनाने की इच्छा प्रगट की । चित्रकार इसके लिये तैयार हो गया, आखिर भगवान् का काम था, किंतु उस चित्र के लिये उसने कुछ शर्ते रखी । उसने कहा मुझे योग्य पात्र चाहिए, अगर वे मिल जाए तो में आसानी से चित्र बना दूंगा।

        मुझे आप कृष्ण के चित्र लिए एक योग्य व नटखट बालक और कंस के लिए एक क्रूरतम भाव वाला व्यक्ति लाकर दे फिर मैं आपका वांछित चित्र अवश्य बना दूंगा ।

Click & Read Also-
भ्रष्टाचार की जड
भलाई में भी सोचें...

        कृष्ण मंदिर के भक्त एक सुंदर, चंचल व अबोध बालक को तत्काल ले आये, चित्रकार को भी वह बालक पसंद आया और उस बालक को सामने रख उसने बालकृष्ण का एक सुंदर चित्र बनाया ।


             अब बारी कंस की थी पर क्रूर भाव वाले व्यक्ति को ढूंढना थोडा मुश्किल था । जो व्यक्ति कृष्ण मंदिर वालो को पसंद आता वो चित्रकार को पसंद नहीं आता, उसे उसमें क्रूरता के वो भाव मिल नहीं रहे थे जो उसे उस व्यक्ति में चाहिये थे ।

           
एक-एक दिन कर वक्त महिनों व सालों की सीमा रेखा को पार कर गया । यहाँ तक कि वह युवा चित्रकार वृद्धावस्था की देहलीज पार कर गया ।

       
आखिर थक-हार कर उस कृष्ण मंदिर के भक्त विशेष अनुमति प्राप्त कर उस चित्रकार को जेल में ले गये जहाँ उम्रकैद की सजा काट रहे अपराधियों में से एक को उस चित्रकार ने कंस की छबि को साकार करने लायक चुना  और उसे सामने रखकर ही उसने कंस का भी चित्र बनाया ।

        कृष्ण और कंस की वो तस्वीर आज सालों के बाद पूर्ण हुई । कृष्ण मंदिर के भक्त उस तस्वीर को देखकर मंत्रमुग्ध हो गए ।

       
तब उस अपराधी ने भी वह तस्वीर देखने की इच्छा व्यक्त की । किंतु जैसे ही उस दुर्दांत अपराधी ने वो तस्वीर देखी तो वो फुट-फुटकर रोने लगा ।  इस स्थिति को देख वहाँ मौजूद सभी लोग अचंभित हो गए ।

Click & Read Also-
बेशकीमती प्याज...
CFL - लापरवाही के खतरनाक परिणाम...
केल्शियम युक्त – आंवले का मुरब्बा 

       
चित्रकार ने तब बड़े प्यार से उससे रोने का कारण पूछा । तब वह अपराधी बोला "शायद आपने मुझे पहचाना नहीं, मैं ही वो बच्चा हुँ जिसे सालों पहले आपने बालकृष्ण के चित्र के लिए पसंद किया था ।" अपने साथ घटने वाले एक छोटे से अन्याय को मैं सहन नहीं कर पाया और बदला लेते-लेते आज यहाँ  उम्रकैदी बनकर कंस रुप में भी मैं ही आपके सामने मौजूद हूँ । काश उन अन्यायियों को मैं क्षमा कर पाता । किंतु नहीं कर पाया और मेरे कुकर्मो से आज में ही कंस भी बन गया । और अब इस तस्वीर में कृष्ण भी मैं ही हूँ और कंस भी मैं ही हूँ ।

       
जीवन के रंगमंच में हमारे कर्म ही हमे कृष्ण बनाते हैं और वही हमें कंस भी बना देते हैं ।

4 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

बहुत सुंदर दृष्टांत

iBlogger ने कहा…

सुशील जी, आपके ब्लाॅग की रचनाएं बेहतरीन और जानकारीवर्द्धक है। आपके ब्लाॅग को हमने Best Hindi Blogs में लिस्टेड किया है।

Sushil Bakliwal ने कहा…

आभार आपका. धन्यवाद सहित...

राम चौधरी ने कहा…

Nice Articale Sir I like ur website and daily visit every day i get here something new & more and special on your site.
one request this is my blog i following you can u give me some tips regarding seo, Degine,pagespeed
www.hihindi.com

ऐतिहासिक शख्सियत...

पागी            फोटो में दिखाई देने वाला जो वृद्ध गड़रिया है    वास्तव में ये एक विलक्षण प्रतिभा का जानकार रहा है जिसे उपनाम मिला था...