रविवार, 17 जुलाई 2016

ईश्वर आज अवकाश पर हैं...


ईश्वर आज अवकाश पर हैं, मंदिर की घंटी ना बजाइये ।

जो बैठे हैं बूढ़े - बुज़ुर्ग,  अकेले पार्क में ...
जाकर  उनके साथ कुछ समय बिताइये ।
ईश्वर आज अवकाश पर है, मंदिर की घंटी ना बजाइये ।

ईश्वर है पीड़ित परिवार के साथ, जो अस्पताल में आज परेशान है ...
उस पीड़ित परिवार की जाकर कुछ मदद कर आइये ।
ईश्वर आज अवकाश पर हैं, मंदिर की घंटी ना बजाइये।

एक चौराहे पर खड़ा युवक, काम की तलाश में है,
उसके पास जाकर, उसे नौकरी के अवसर दिलाइये ...
ईश्वर आज अवकाश पर हैं, मंदिर की घंटी ना बजाइये ...

ईश्वर है चाय कि दुकान पर, उस अनाथ बच्चे के साथ ...
जो, कप प्लेट धो रहा है,
पाल सकते हैं, पढ़ा सकते हैं, तो उसको आप पढ़ाइये ...
ईश्वर आज अवकाश पर हैं, मंदिर की घंटी ना बजाइये ।

एक बूढ़ी औरत, जो दर दर भटक रही है,
एक अच्छा सा लिबास जाकर उसे दिलाइये ...
हो सके तो, उसे किसी नारी आश्रम में छोड़ आइये ।
ईश्वर आज अवकाश पर हैं, मंदिर की घंटी ना बजाइये ।


शनिवार, 2 जुलाई 2016

विचित्र विशेष :

            गुजरात के सूरत शहर मे एक रेस्टोरेंट ने 1500/- की थाली लांच की है । इसका नाम है बकासूर थाली...



            और इस बकासूर थाली मे 100 प्रकार के आइटम हैं, जिनमे 55 प्रकार की शाकाहारी सब्जियां और 21 प्रकार की मिठाइयां शामिल है ।

            अब सरप्राइज ये है कि अगर कोई व्यक्ति इस बकासूर थाली के पूरे आइटम खा लेगा तो उसे रेंस्टोरेट की तरफ से 1 लाख रु. इनाम भी दिया जायेगा ।

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हिमालय  में खिला "नागपुष्प"

 

            बरसो बाद दिखाई दिया.... ये पुष्प शेषनाग की तरह दीखता है जो करीब 36 सालो में एक बार ही देखा जा सकता है ।
 
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केरल के कॉलेज मे जीन्स बैन करने के बाद... 


लडकियां लूँगी पहन कर आ गई, अब प्रशाशन पशोपेश में.

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            एक दिन दादी घर पर बैठीं थीं । तभी फोन की घण्टी बजी । फोन से बात करके दादी बहुत खुश हुईं क्योंकि पोते एवं पोती दादी से मिलने आ रहे थे । 
            दादी खुशी में झूम उठीं और बोली-  'हां, तुम लोग आ रहे हो तो ढेर सारी बातें करेंगे । और हां, मैं नाती को भी फोन करके बुला लेती हूँ। सब मिलकर खूब बातें करेंगे,  मजे करेंगे ।
            फिर सब लोग दादी से मिलने सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय कर पहुंचे । आगे क्या होता है ? इसके लिए नीचे का फोटो देखिये-
  

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और ये हैं पर्यावरण पुरस्कार के...



असली हकदार...!
 

पुकार...


            एक कंस्ट्रक्शन साईड पर चलते काम में 6ठे माले पर मौजूद इंजीनियर ने सडक पर काम कर रहे एक कर्मचारी को आवाज दी जो काम के शोर के कारण नीचे मौजूद उस कर्मी ने नहीं सुनी । इंजीनियर ने उसे फिर आवाज दी, उसने फिर भी नहीं सुनी । इंजीनियर ने उसका ध्यान आकर्षित करवाने हेतु 10/- रु. का सिक्का नीचे उस कर्मचारी के पास फेंका जो ठीक उसके बगल में जाकर गिरा । नीचे मौजूद कर्मचारी ने उपर देखें बगैर वो सिक्का उठाकर अपनी जेब में डाल लिया और फिर अपने काम में लग गया । इस बार उपर मौजूद उस इंजिनीयर ने 500/- रु. का नोट उसके उपर छोटी सी घडी बनाकर फेंका, वह नोट भी उस कर्मचारी के बगल में जाकर ही गिरा । नीचे मौजूद उस कर्मचारी ने फिर उपर देखें बगैर वो नोट उठाकर अपनी जेब में डाला और फिर अपने काम में लग गया ।  अंततः उपर मौजूद इंजीनियर ने एक छोटा पत्थर उठाकर उस कर्मचारी पर फेंका जो उसके सर में जाकर लगा और तब उस नीचे मौजूद कर्मचारी की निगाहें उपर की ओर उठी । 

            वास्तविक जिंदगी में उपर मौजूद वह इंजीनियर ईश्वर है और नीचे मौजूद कर्मचारी हम स्वयं हैं । हम भी ईश्वर से प्राप्त समस्त नेमतें अपना अधिकार मानते हुए ग्रहण करते चले जाते हैं, किंतु ईश्वर को याद अथवा उनका शुक्रिया अदा नहीं करते । फिर जब वो हमें तकलीफरुपी पत्थर मारकर हमें जगाता है तब हम तत्काल उसकी ओर देखते हुए उनसे समस्या मुक्ति का मार्ग उपलब्ध करवाने हेतु मन्नत, निवेदन व नाना प्रकार के उपाय करने लगते हैं ।

             क्या यह उचित नहीं माना जाना चाहिये कि जब-जब भी किसी भी प्रकार की छोटी या बडी नेमतें प्राप्त हों चाहें वो हमें अपने काम का वास्तविक प्रतिसाद ही क्यों न लगता रहा हो, हम कुछ समय रुककर अपने उस ईश्वर का शुक्रिया अदा करें और फिर दुगने-जोशो-खरोश से अगली उपलब्धियों के लिये प्रयासरत हो जावें । सयाने और समझदार लोग तो सुबह उठते ही सबसे पहले ईश्वर को इसी लिये इस बात पर भी धन्यवाद देते हैं कि अपने जीवनकाल में ईश्वरकृपा से उन्हें एक और नया सूर्योदय देखने को मिल रहा है ।


            संकट में याद करने वालों से तो देश व दुनिया के अधिकांश मंदिर बीसीयों घंटे भीड से खचाखच भरे दिखते ही रहते हैं किंतु संकटकाल के बगैर भी यदि ईश्वर को याद करते रहने और उनका धन्यवाद अर्पित करते रहने का सिलसिला निर्बाध क्रम से हम जारी रख सकें तो हो सकता है कि विपत्तियों के बडे चक्र में फंसने की स्थिति ही कभी ना बनने पावे ।

            शायद इसी बात को संत कबीरदासजी ने यूं परिभाषित किया है-

दुःख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय,
जो सुख में सुमिरन करें तो दुःख काहे को होय ।
 

ऐतिहासिक शख्सियत...

पागी            फोटो में दिखाई देने वाला जो वृद्ध गड़रिया है    वास्तव में ये एक विलक्षण प्रतिभा का जानकार रहा है जिसे उपनाम मिला था...