बुधवार, 8 जून 2011

अपनी- अपनी बारी...


          एक परिचित परिवार, पति-पत्नि और दो पुत्र । खाते-पीते संघर्षशील परिवार के मंध्यमवर्गीय पिता ने तीव्रबुद्धि पुत्रों की शिक्षा में लगन को देखते हुए बडे पुत्र को लगभग 10 लाख रु. खर्च करके डाक्टर बनवाया । छोटे-पुत्र को भी डाक्टर बनवाते शैक्षणिक खर्च सिर्फ छोटे पुत्र का ही 20 लाख तक पहुँच गया । इस दरम्यान पत्नि भी साथ छोड गई और दोनों बच्चों ने विवाह के बाद अपने-अपने अलग-अलग आशियाने बना लिये ।

         
अब वृद्धावस्था की मार के साथ जितनी बीमारियां उतने ही कर्जों के भार से उस व्यक्ति की हालत दयनीय है । नाते-रिश्तेदार जब उन बच्चों से अपने पिता को सम्हालने के लिये कहते हैं तो दोनों ही पुत्रों का अलग-अलग किन्तु एक ही जवाब होता है - मुझे उनसे कोई बात नहीं करना, कोई रिश्ता नहीं रखना ।

         
सम्भव है कि जमाने के साथ संघर्षशील मनोस्थिति में कभी चिडचिडाहट के दौरान एकाधिक बार उस व्यक्ति के द्वारा अपने बच्चों को डांट देने की स्थिति में ऐसा कुछ भी कभी कहने में आ गया हो जो इन बच्चों को सुनना बिल्कुल भी अच्छा न लगा हो किन्तु यदि ऐसा हुआ भी हो तो क्या इन स्थितियों में उन आर्थिक व सामाजिक रुप से सक्षम पुत्रों द्वारा अपने लगभग असहाय पिता के प्रति ये नजरिया उचित है ?  


         
ऐसी ही स्थिति को ध्यान में रखकर राष्ट्रसंत मुनि श्री तरुणसागरजी ने कभी कहा होगा - 

अपने बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलवाकर उन्हें पर्याप्त योग्य अवश्य बनवाओ
किन्तु उन्हें इतना योग्य भी मत बनवा देना कि बडे होकर वो 
तुम्हें ही अयोग्य समझने लगें ।

14 टिप्‍पणियां:

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

हूँ.... अपनी अपनी बारी.... :(

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

बहुत गहरी बात कही है आपने।

---------
बाबूजी, न लो इतने मज़े...
चलते-चलते बात कहे वह खरी-खरी।

Shah Nawaz ने कहा…

मुनि तरुणसागर जी ने बहुत ही बेहतरीन बात कही... कहावत है कि माँ-बाप मिलकर १० बच्चो को पाल सकते हैं, लेकिन 10 बच्चे मिलकर भी माँ-बाप को नहीं पाल पाते... बहुत ही दुखद बात है..

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सच बात है, बच्चों को भी यह तथ्य समझना होगा।

आशुतोष की कलम ने कहा…

विचारनीय तथ्य..
मगर उन अभिवावकों ने क्या उच्च आदर्श प्रस्तुत किये हैं माता पिता की सेवा के अपने बच्चों के सामने????
ये एक यक्ष प्रश्न है....

Er. सत्यम शिवम ने कहा…

आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (11.06.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

Deepak Saini ने कहा…

विचारनीय तथ्य..

संगीता पुरी ने कहा…

ताज्‍जुब है .. संतान माता पिता से ऐसे विमुख कैसे हो जाते हैं ??

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आज का ज़माना ऐसा ही है ...संत तरुणसागर जी की बात विचारणीय है .

Arunesh c dave ने कहा…

सच तो यही है पर फ़िर भी ---

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

मुनि तरुणसागर जी के कथन के मर्म की आपने अपने लेख में सटीक व्याख्या की है. विचारणीय है.

रमेश कुमार जैन उर्फ़ निर्भीक ने कहा…

मेरा बिना पानी पिए आज का उपवास है आप भी जाने क्यों मैंने यह व्रत किया है.

दिल्ली पुलिस का कोई खाकी वर्दी वाला मेरे मृतक शरीर को न छूने की कोशिश भी न करें. मैं नहीं मानता कि-तुम मेरे मृतक शरीर को छूने के भी लायक हो.आप भी उपरोक्त पत्र पढ़कर जाने की क्यों नहीं हैं पुलिस के अधिकारी मेरे मृतक शरीर को छूने के लायक?

मैं आपसे पत्र के माध्यम से वादा करता हूँ की अगर न्याय प्रक्रिया मेरा साथ देती है तब कम से कम 551लाख रूपये का राजस्व का सरकार को फायदा करवा सकता हूँ. मुझे किसी प्रकार का कोई ईनाम भी नहीं चाहिए.ऐसा ही एक पत्र दिल्ली के उच्च न्यायालय में लिखकर भेजा है. ज्यादा पढ़ने के लिए किल्क करके पढ़ें. मैं खाली हाथ आया और खाली हाथ लौट जाऊँगा.

मैंने अपनी पत्नी व उसके परिजनों के साथ ही दिल्ली पुलिस और न्याय व्यवस्था के अत्याचारों के विरोध में 20 मई 2011 से अन्न का त्याग किया हुआ है और 20 जून 2011 से केवल जल पीकर 28 जुलाई तक जैन धर्म की तपस्या करूँगा.जिसके कारण मोबाईल और लैंडलाइन फोन भी बंद रहेंगे. 23 जून से मौन व्रत भी शुरू होगा. आप दुआ करें कि-मेरी तपस्या पूरी हो

Gopal Mishra ने कहा…

Thought provoking.

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

kya baat hai................tarun sagar ji maharaj kadve satya kahne ke liye vikhyat hain....aapki prastuti behtreen hai...sadhuwad swikaren......

ऐतिहासिक शख्सियत...

पागी            फोटो में दिखाई देने वाला जो वृद्ध गड़रिया है    वास्तव में ये एक विलक्षण प्रतिभा का जानकार रहा है जिसे उपनाम मिला था...