किसी पुण्यात्मा को शरीर छूटने के बाद स्वर्ग या नर्क में स्वयं चुनाव करने का अवसर मिला । उन्होंने निर्णय लेने के पूर्व जब दोनों जगह देखने की इच्छा जाहिर की तो देवदूत उन्हें अपने साथ दोनों ही जगह दिखाने लेकर चला । पहले वे नर्क में गये और वहाँ उन्होंने देखा कि सभी नर्कवासी बडी-बडी मेजों पर बैठकर भोजन कर रहे थे और उन सभी के हाथों में बडे-बडे चमचे बंधे हुए थे जिसके कारण वे प्लेट से खाना उठा तो पा रहे थे किन्तु जैसे ही वे उसे अपने मुँह में डालने का प्रयास करते तो उस बडे चमचे का भोजन उनके मुँह में जाने के बजाय उनके सिर के पीछे जाकर गिर जाता और वे सभी नर्कवासी भोजन के करीब बैठकर भी भूखे ही रह पाने के लिये अभिशप्त लग रहे थे ।
अब उस पुण्यात्मा ने स्वर्ग जाकर देखने की इच्छा जाहिर की तो देवदूत उन्हे लेकर स्वर्ग पहुँचा वहाँ भी उन्हे वैसा ही मिलता-जुलता दृश्य देखने को मिला । वहाँ भी सभी स्वर्गवासी वैसी ही बडी-बडी मेजों पर बैठकर भोजन कर रहे थे और उन सबके हाथों में भी वैसे ही बडे-बडे चमचे बंधे हुए थे जिसके कारण वे स्वर्गवासी भी अपने हाथ से भोजन ग्रहण कर पाने में असमर्थ लग रहे थे किन्तु यहाँ एक अन्तर दिख रहा था और वो यह कि वे सभी स्वर्गवासी चम्मच में भोजन लेकर अपनी बजाय अपने साथ वाले के मुँह में वह भोजन डाल रहे थे और इस प्रकार उन सभी की क्षुधा आसानी से तृप्त हो रही थी ।
फंडा यह है कि - जब हमारे साथ रहने वाले हमारा और हम उनका ध्यान रख रहे होते हैं तो वहाँ स्वर्ग होता है और जहाँ हर व्यक्ति सिर्फ अपनी ही मैं - मैं में लगा रहता है वहीं नर्क होता है ।
6 टिप्पणियां:
बस इतना ही अन्तर है स्वर्ग व नर्क में।
वाह ... स्वर्ग नर्क के भेद कों बहुत अच्छे से समझा दिया आपने ... और ये स्वर्ग नर्क यहीं है इन अंकों के सामने .....
a well known story
well interpreted
प्रेरक कथा है।
kitnee sadgi se jeewan ka itna bada rahsya samjha diya aapne..wakai seekhne wali baat hai..sadar pranaam aaur sadar amantran ke sath
फंडा तो सही है सुशील जी.
घुघूतीबासूती
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