हीरानगर का सेठ
मोतीराम बहुत परोपकारी होने के साथ ही अपने गुरु रामदीन की हर आज्ञा का पालन करता
था और परेशानी की स्थिति में सलाह भी उन्हीं से लिया करता था ।
एक दिन सेठ
मोतीराम अपने गुरु रामदीन के आश्रम में गया और उनसे पूछा – गुरुदेव नादानी और
समझदारी के बीच क्या फर्क है ? गुरु
कुछ समय तो शांत रहे फिर बोले – नादानी और समझदारी में फर्क तो नाममात्र का ही है
किन्तु इनका प्रभाव बहुत गहरा है ।
सेठ मोतीराम ने पूछा – गुरुदेव ! मैं समझा नहीं, कुछ विस्तार से समझाईये । तब गुरु रामदीन ने सेठ मोतीराम को
दो तोते दिये और कहा कि वक्त आने पर ये तोते तुम्हें नादानी और समझदारी का फर्क
सिखा देंगे । उन तोतों में एक का नाम हरियल था और दूसरे का हरिमन ।मोतीराम को दोनों तोते एक जैसे ही लगे । एक सा रंग, एक सा दिमाग और दोनों
बोलने में माहिर । कोई भी सवाल पूछने पर हरियल बात का तपाक से जबाब देता और हरिमन
थोडा सोच-समझकर । दोनों ही तोते मोतीराम के अच्छे दोस्त बन गये ।
कुछ दिन बाद एक रात मोतीराम के घर में कोई चोर घुस गया । कमरे में चोर को
देखते ही हरियल तोता चिल्लाया चोर ! चोर
! अपने मकसद में विघ्न पडते देख चोर ने हरियल की ओर देखा और तुरन्त उसके पास
जाकर उसकी गरदन मरोडकर उसे खत्म कर दिया । जबकि हरिमन शांत रहा और अंधेरे में चोर
का ध्यान उसकी ओर गया भी नहीं । हरिमन जानता था कि कौनसी बात कब और कैसे कही जानी
चाहिये ।
जब चोर बहुत सा कीमती सामान पोटली में बांधकर कमरे से बाहर निकला तो
हरिमन तेज आवाज में चिल्लाया चोर ! चोर
! चोर ! आवाज सुनकर मोतीराम और उसका परिवार जागकर चिल्लाते हुए चोर
के पीछे दौडे, उनका शोर सुनकर पडौसी भी जाग गये और उन सबके बीच चोर तत्काल पकड में
आगया ।
सेठ मोतीराम अगले दिन अपने गुरु रामदीन के पास गया और बोला – गुरुदेव ! आपके दिये तोतों ने मुझे नादानी और समझदारी के बीच का
फर्क समझा दिया है कि कोई भी बात बोलते वक्त परिस्थिति का ध्यान रखना बहुत जरुरी
है । अन्यथा वही बात आपको मौत के मुंह में भी पहुँचा सकती है जबकि ध्यान रखकर
बोलने पर वही बात आपको पुरस्कृत करवा सकती है ।
समाचार पत्र “पत्रिका” से साभार.