एक समय किसी जहाज के दुर्घटनाग्रस्त हो
जाने के बाद तीन व्यक्ति अपना सब कुछ खोकर बहते-बहते एक निर्जन टापू पर जा पहुँचें
। वह टापू प्राकृतिक सम्पदाओं से ओतप्रोत होने के कारण विभिन्न प्रकार के
स्वादिष्ट फलों से भरपूर वृक्षों से परिपूर्ण भी था । अतः वे तीनों व्यक्ति वहीं
बस गये । संयोगवश वहाँ तीन पत्थर भी जमीन में गहराई तक गडे थे अतः उन तीनों
व्यक्तियों की नित्य-पूजा भी उन पत्थरों के समीप होने लगी ।
प्रतिदिन वे तीनों व्यक्ति अपनी
आवश्यक दैनिक क्रियाओं से फारिग होने के बाद बडी लगन से उन पत्थरों के समीप बैठकर
एक ही प्रार्थना करते थे- You are three, We are three. (यू आर थ्री, वी आर थ्री) । दिन गुजर रहे थे ।
संयोगवश उधर से गुजरते हुए एक जहाज के यात्री उस टापू के मनोरम वातावरण को देखकर
कुछ समय के लिये वहाँ रुक गये । वहाँ उन यात्रियों ने जब इन तीन टापू वासियों को
वहाँ आराम से रहते देखा तो उन्होंने भी जल्दी रवाना होने की चिन्ता छोडकर कुछ अधिक
दिनों तक वहाँ रुकने का मन बनाया और उन तीनों व्यक्तियों के साथ वहाँ छुट्टियां
व्यतीत करने जैसे माहौल में उनके साथ रुक गये ।
जब उन्होंने उन तीनों व्यक्तियों
को वहाँ प्रार्थना में ये कहते हुए सुना कि You are three, We
are three. (यू आर
थ्री, वी आर
थ्री) तो जहाज के उन यात्रियों को बडा अटपटा लगा । उन्होंने उन तीनों को समझाया कि
भाई देव-उपासना ऐसे नहीं करते हैं और फिर उन्हें प्रार्थना कि वे समस्त विधियां जो
वे जानते थे उन तीनों को समझाई । दो-चार दिन जब तक उस जहाज के यात्री वहाँ रुके
रहे तब तक वे तीनों प्राणी उन यात्रियों के साथ ही उनकी शैली में ही अपनी उपासना करते रहे ।
जब उस जहाज के यात्रियों की
रवानगी का समय आया तो वे उन तीनों साथियों से बिदा लेकर अपने रास्ते पर आगे की ओर
बढ गये । इधर उनके जाने के बाद जब इन तीनों निवासियों की उपासना का वक्त आया तो उनके समझाये हुए सारे
श्लोक व विधियां वे भूल गये, अब ? उन्होंने
सोचा कि एक बार फिर से उन यात्रियों से ही प्रार्थना की विधि और समझ ली जावे । ये
सोचकर वे तीनों उनके जहाज के पीछे दौड पडे ।
इधर जहाज के वे यात्री जिन्हें
वह टापू छोडे कई घंटे गुजर चुके थे ये देखकर हक्का-बक्का रह गये कि टापू पर निवास
कर रहे वे तीनों निवासी पानी के उपर ऐसे दौडते चले आ रहे हैं जैसे सडक पर दौड रहे
हों । उन्होंने अपना जहाज रुकवाया । नजदीक आकर जब उन तीनों टापू वासियों ने उन
जहाजी यात्रियों से कहा कि भाई आपकी बताई गई पूजा की विधियां और श्लोक व भजन हम
भूल रहे हैं । आप कृपा करके एक बार हमें वे सब और समझा दें । अब तो उस जहाज के सभी
यात्रियों नें उन तीनों टापू निवासियों के पैर पकड लिये और बोले भाई गल्ति हमसे ही
हो गई । हमारी पूजा तो ऐसी ही है लेकिन वास्तविक पूजा तो जो तुम लोग आज तक करते आ
रहे हो You are three, We are three. (यू आर थ्री, वी आर थ्री) वही सही है और आप लोग अपनी
वही पूजा करते रहो ।
* ईश्वर की वास्तविक प्रार्थना (पूजा) किसी विधि-विधान की मोहताज नहीं
होती है ।
10 टिप्पणियां:
मजा आ गया
वाकई, मजा आ गया।
शिक्षाप्रद कथा है लेकिन मन्दिरों और मस्जिदों का अम्बार लगाने वालों को कौन समझाए?
सही बात। एक कहावत भी है, मन चंगा तो कठौती में गंगा।
बिलकुल सही लेख लिखा है, भगवान की पुजा के लिए किसी भी आड्म्बर की जरुरत नहीं होती है।मन में जैसी भी भावना हो वैसे ही पूजा कर लो। भगवान उसी भाव में प्रकट होते हैं। ऐसा हम सुनते आए हैं। सुन्दर रचना के लिए धन्यवाद्।
लघुकथा के बहाने बहुत बडी बात कह दी। काश, लोगों के समझ में भी आती।
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ब्लॉगवाणी: ब्लॉग समीक्षा का एक विनम्र प्रयास।
सही कहा - ईश्वर की वास्तविक प्रार्थना (पूजा) किसी विधि-विधान की मोहताज नहीं होती है ।
पूजा में मन के भाव ही मायने रखते हैं..... बहुत अच्छी कथा
सच में बात श्रद्धा की है।
sir, aapne sach likha.shraddha rhe to bhagwan b aa jate h.
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