व्यंग : कस्मे, वादे, प्यार,
वफा सब...
सट्टा, आतंक,
रेप, करप्शन,
रुके कभी हैं रुकेंगे क्या...
कितना भी लिखलो चिल्लालो,
दिखेंगे नारे, नारों का क्या.
रुके कभी हैं रुकेंगे क्या...
कितना भी लिखलो चिल्लालो,
दिखेंगे नारे, नारों का क्या.
सट्टा, आतंक...
होंगे लाखों विरोध में इनके
फिर भी ना रुक पाएंगे
कभी किसीके कभी किसीके
स्वार्थ इन्हें बढाएंगे
फिर भी ना रुक पाएंगे
कभी किसीके कभी किसीके
स्वार्थ इन्हें बढाएंगे
जो देखेगा लाठी हाथ में,
वो ही दांव दिखाएगा.
सट्टा, आतंक...
सट्टा, आतंक...
लुटने वाला दुःखी रोएगा
लूटे वो मुस्काएगा
जहाँ-तहाँ वो बांट के हिस्सा
खुदको पाक बचाएगा
लूटे वो मुस्काएगा
जहाँ-तहाँ वो बांट के हिस्सा
खुदको पाक बचाएगा
रोते रहेंगे लाखों देश में,
वो फिर भी मुस्काएगा...
सट्टा, आतंक, रेप,
करप्शन,
रुके कभी हैं रुकेंगे
क्या...
4 टिप्पणियां:
मुझे आप को सुचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि
आप की ये रचना 31-05-2013 यानी आने वाले शुकरवार की नई पुरानी हलचल
पर लिंक की जा रही है। सूचनार्थ।
आप भी इस हलचल में शामिल होकर इस की शोभा बढ़ाना।
मिलते हैं फिर शुकरवार को आप की इस रचना के साथ।
जय हिंद जय भारत...
कुलदीप ठाकुर...
acchi prastuti ..saadar badhayee ke sath
काश ये रुकें और देश हँसे।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (31-05-2013) के "जिन्दादिली का प्रमाण दो" (चर्चा मंचःअंक-1261) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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