सुनने की आदत डालो, क्योंकि दुनिया में कहने वालों की कमी नहीं है । कडुवे घूंट पी-पीकर जीने और मुस्कराने की आदत बना लो क्योंकि दुनिया में अब अमृत की मात्रा बहुत कम रह गई है । अपनी बुराई सुनने की खुदमें हिम्मत पैदा करो क्योंकि लोग तुम्हारी बुराई करने से बाज नहीं आएंगे । आलोचक बुरा नहीं है बल्कि वही तो जिंदगी के लिये साबुन-पानी का काम कर रहा है । आखिर जिन्दगी की फिल्म में खलनायक भी तो जरुरी है ।
मुनि श्री तरुण सागर जी.
7 टिप्पणियां:
बहुत ही प्रेरक और सत्य वचन ... अनमोल वचन ...आभार
है तो सही!!
कितनी सच बात कही है।
प्रेरक
Bahut sunder .....achchi aur sachchi baat....
श्रीमान जी, मैंने अपने अनुभवों के आधार ""आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें"" हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है. मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग www.rksirfiraa.blogspot.com पर टिप्पणी करने एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.
सत्य वचन !
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