गांव के लल्लन महाराज की 84 साल की माताजी का स्वर्गवास हो गया । तेरहवी में भोज का इंतेज़ाम हुआ, बंता हलवाई तरह-तरह के पकवान बनवा रहा था । मोहनथाल, पूरी, कचोरी, खाजा, लड्डू की सुगंध फ़िज़ाओं में बिखर रही थी । आसपास के गांव के कुत्ते उस सुगंध से आकर्षित होकर खाना बनाने की जगह इकठ्ठा होने लगे, लेकिन दुत्कार और ढेलों की मदद से भगाये जाने से पास के खेत में सारे कुत्ते इकठ्ठा हो गए ।
एक कुत्ता बोला - में देख कर आता हूँ क्या-क्या बन गया खाने में । वो जैसे ही बंता हलवाई की रसोई के पास पहुंचा, उसको डंडों से तुरंत मार कर भगा दिया गया । बेचारा जान बचा कर खेत पर आया तो सब कुत्तों ने हाल पूछा तो कुत्ता बोला - अरे भाई जाते ही तुरंत दे रहे हैं, तत्काल दे रहे हैं वो लोग तो ।
थोड़ी देर बाद दूसरा कुत्ता गया, इस बार उसके ऊपर एक रसोइये ने गरम पानी फेंक दिया, बेचारा कुत्ता पानी झटकते बिलबिलाते हुए वापस आ गया । फिर सबने हाल पूछा तो वो बोला कुत्ता - अरे भाई वो तो गर्मागर्म दे रहे हैं, पहुंचते ही गर्मागर्म दे रहे हैं ।
थोड़ी देर बाद तीसरा कुत्ता हिम्मत करके पहुंचा, रसोइये भी तैयार थे । उस कुत्ते को कई लोगों ने घेर कर बहुत देर तक मारा, बच कर जाने ही नहीं दे रहे थे । लंगड़ाते हुए वो कुत्ता वापस पहुंचा तो सबने फिर हाल पूछा तो कुत्ता बोला - अरे भाई लोगों क्या बताऊँ ! ऐसा सत्कार हुआ की वो लोग वापस ही नहीं आने दे रहे थे । घेर-घेर कर रोकते हुए दे रहे थे ।
मोरल ऑफ़ स्वान कथा : ''अपनी इज़्ज़त अपने हाथ में है, बेइज़्ज़ती को भी इज़्ज़त अफ़ज़ाई में तब्दील किया जा सकता है'' ।
1 टिप्पणी:
बहुत रोचक किन्तु सार्थक कहानी ...
सच है अपनी इज़्ज़त अपने हाथ होती है
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