किसी गांव में ठगू नाम का एक व्यक्ति रहा करता था । अपने विचित्र नाम के कारण उसे बच्चे तो बच्चे, बडों के भी उपहास का पात्र बनना पडता था । आखिर एक दिन वह व्यक्ति अपनी पत्नि और परचितों को ये बताकर घर से निकला कि आज तो मैं अपना नाम बदलकर ही लौटूंगा.
नाम बदलने की सोच के साथ जब वह कुछ दूर निकल गया तो एक खेत में उसे एक स्त्री मजदूरी करते हुए दिखी, ठगू ने उससे पूछा- माई तुम्हारा नाम क्या है ? भैया मेरा नाम लक्ष्मी है. उस स्त्री ने जवाब दिया । उसका नाम सुनकर ठगू सोचते-सोचते आगे बढ गया ।
कुछ और दूर जाने पर एक भिखारी उसे दिखा । ठगू ने उससे भी वही प्रश्न पूछा- भैया तुम्हारा नाम क्या है ? मेरा नाम धनपत है. उस भिखारी ने जवाब दिया । ठगू वहाँ से भी सोचते हुए आगे निकल गया ।
और भी आगे जाने पर उसे एक शवयात्रा लेकर जाते कुछ लोग दिखे । उसने उनमें से एक से पूछा- भैया ये मरने वाले का नाम क्या था ? तब उस व्यक्ति ने उसे बताया- मरने वाले का नाम अमरसिंह था । बडा अच्छा आदमी था किन्तु 25-26 वर्ष की उम्र में ही चल बसा ।
फिर तो ठगू वापस अपने घर आ गया । सबने पूछा- भई ठगू आज तो तुम अपना नाम बदलने गये थे । क्या नाम रखकर आए हो ? तब ठगू ने जवाब दिया-
लक्ष्मी होकर करे मजूरी, धनपत मांगे भीख.
अमरसिंह भी मर गया, ठगू नाम ही ठीक.
11 टिप्पणियां:
वाह क्या बात है ....वाकई व्यर्थ की बातो मे बेकार ही समय जाया करते है बहुत बार हम लोग ...
ठगू नाम ही ठीक। बढिया है, जो नाम मिल गया उसी में खुश हैं जी।
जिससे पहचान है, वही ठीक। नाम जीने का क्या लाभ?
गौतम बुद्ध सी बोध कथा.
ठगू नाम ही ठीक.
अच्छी सीख!
पंचतंत्र की वापसी.....वाह.
बहुत खूब !
बहुत ही सुन्दर बोधकथा । जो नाम मिल गया वही ठीक ।
बहुत बढ़िया कथा है। बधाई।
प्रमोद ताम्बट
भोपाल
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जो नाम मिल गया वही ठीक ।
सही कहा । नाम में क्या रखा है ।
प्रेरणात्मक प्रसंग ।
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