एक परिवार में दो भाई साथ में रहते थे ।
पिता की मृत्यु के बाद दोनों भाईयों में सम्पत्ति का बंटवारा हो गया और दोनों
अपना-अपना काम व अपनी-अपनी गृहस्थी में रहने लगे । बडे भाई की पत्नी जितनी
तेज-तर्रार थी उतनी ही कामचोर होने के साथ फिजूलखर्च भी थी, जबकि छोटे भाई की पत्नी मेहनती स्वभाव
के साथ मितव्ययता से जीवन जीने की प्रवृत्ति में यकीन रखती थी ।
दोनों देवरानी व जेठानी की इन
अलग-अलग प्रवृत्तियों के कारण थोडे ही समय में दोनों भाईयों की आर्थिक स्थितियों
में असमानता बढने लगी । छोटे भाई के परिवार की बढती समृद्धि देखकर बडे भाई की
पत्नी रोज अपने पति से शिकायत करती कि बंटवारे में हमारे साथ धोखा हुआ है और
तुम्हारे छोटे भाई ने अधिक धन-सम्पत्ति अपने कब्जे में ऱखली है । इसलिये तुम्हें
राजा के पास जाकर उनसे शिकायत करने के साथ ही अपने लिये न्याय मांगना चाहिये ।
फैसला आसान न था अतः राजा ने मंत्री से सलाह-मशवरा कर दोनों महिलाओं को दूसरे दिन सुबह तालाब से एक-एक घडा बाल्टी पानी इस आदेश के साथ लाने को कहा कि पानी ढूलना नहीं चाहिये । दूसरे दिन दोनों देवरानी व जेठानी नियत समय पर पानी का घडा व बाल्टी तालाब से भरकर राजमहल तक पहुँची । दोनों ही महिलाओं से कीचड सने रास्तों पर नंगे पैर चलवाते हुए अलग-अलग यह पानी मंगवाया गया था । जेठानी अपना पानी पहले लेकर पहुँच गई जिसमें जल्दबाजी के कारण राजा के आदेश के बाद भी छलकने से पानी कम हो चुका था । फिर सेवक ने जेठानी के पैर धोकर साफ करने के लिये एक लोटा पानी उसे दिया जिसे उसने पैरों पर डालकर पैर साफ करने चाहे जो नहीं हुए । इतने कीचड के पैर इतने से पानी में कैसे साफ होंगे कहते हुए उसने सेवक से कहा- ला भैया थोडा पानी और दे । सेवक ने उसे और पानी दे दिया, उसे भी अपने पैरों पर डालकर भी वह अपने पैर पूरी तरह से साफ नहीं कर पाई ।
तब तक देवरानी भी अपना घडा बाल्टी भरकर ला चुकी थी । उसके बर्तनों का
पानी बगैर छलके पूरा भरा दिखाई दे रहा था । सेवक ने पैर साफ करने के लिये उसे भी
एक लोटा पानी दिया जिसे उसने वहीं रखकर पहले जमीन से एक पत्ता उठाकर उस पत्ते से
अपने पैर का अधिकांश कीचड साफ किया । फिर पानी की पतली सी धार एक पैर पर डालते हुए
दूसरे पैर से रगडकर पहला पैर व फिर उसी प्रकार दूसरे पैर पर पतली सी धार डालते हुए
दूसरे पैर से पहला पैर रगडकर साफ कर लिया व फिर दोनों पैरों को एक साथ साफ करने के
बाद भी कुछ बचे हुए पानी के साथ लोटा वापस सेवक को लौटा दिया ।
राजा व वजीर महल की खिडकी से दोनों महिलाओं के तरीके को बहुत ध्यान
से देख रहे थे । राज दरबार में दोनों महिलाओं को उनके पतियों के साथ बुलवाकर राजा
ने सभी दरबारियों के समक्ष बडे भाई को अपना फैसला सुना दिया कि तुम्हारी पत्नी
लापरवाह और फिजूलखर्च है और बंटवारे के बाद अब यदि तुम्हें अपने हिस्से में कमी लग
रही है तो उसकी जिम्मेदार तुम्हारी पत्नी के खर्च करने का तरीका है न कि बंटवारे
में किसी प्रकार की बेईमानी ।
और आसमान पर थूकने की सी कोशिश करती बडे भाई की शिकायती पत्नी अपने पति के साथ अपमानित होकर अपना सा मुंह ले घर वापस आ
गई ।
10 टिप्पणियां:
उम्दा प्रेरणादायक कथा.
नवसंवत्सर की शुभकामनाएं
बहुत सुन्दर कथा, मितव्ययता होनी चाहिये।
पहले इसी प्रकार की न्याय व्यवस्था थी, बहुत अच्छी प्रेरक बोधकथा। आप पत्नी को बड़ी मात्रा के साथ ही लिखेंगे तो शुद्ध होगा, कृपया इसे स्वीकार करें।
एक विचारणीय प्रश्न ! हमे मितव्यता से काम लेना चाहिए तभी सम्भवतः हमारा जीवन सुचारू तरीके से चल सकता है बाज़ार तो भरा पड़ा है पर खरीदारी वही करे,जिसकी जरूरत हो --एक अच्छी पोस्ट के लिए धन्यवाद !
प्रेरक बोध-कथा .
मनन करने योग्य संदेश दे रही है !
बहुत सुन्दर शिक्षाप्रद कहानी...
आपका ब्लॉग देखा | बहुत ही सुन्दर तरीके से अपने अपने विचारो को रखा है बहुत अच्छा लगा इश्वर से प्राथना है की बस आप इसी तरह अपने इस लेखन के मार्ग पे और जयादा उन्ती करे आपको और जयादा सफलता मिले
अगर आपको फुर्सत मिले तो अप्प मेरे ब्लॉग पे पधारने का कष्ट करे मैं अपने निचे लिंक दे रहा हु
बहुत बहुत धन्यवाद
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
http://vangaydinesh.blogspot.com/
बहुत शिक्षाप्रद कथा...नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें!
शिक्षाप्रद खुबसूरत कहानी
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