बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

अधूरे हम...



             एक युवक बगीचे में खिन्न मुद्रा में बैठा था ।  एक बुजुर्ग ने उस परेशान युवक से पूछा -  क्या हुआ बेटा क्यूं इतने परेशान हो ?
 
            युवक ने गुस्से में अपनी पत्नी की गल्तियों के बारे में बताया ।
 
            बुजुर्ग ने कुछ मुस्कराते हुए युवक से पूछा-
 
            बेटा क्या तुम बता सकते हो - तुम्हारा धोबी कौन है ?
 
            युवक ने हैरानी से पूछा - क्या मतलब  ?
 
            बुजुर्ग ने कहा - तुम्हारे मैले कपड़े कौन धोता है ?
 
            युवक बोला - मेरी पत्नी...
 
            बुजुर्ग ने पूछा - तुम्हारा बावर्ची कौन है ?
 
            युवक - मेरी पत्नी...
 
            बुजुर्ग - तुम्हारे घर-परिवार और सामान का ध्यान कौन रखता है ?
 
            युवक - मेरी पत्नी...
 
            बुजुर्ग ने फिर पूछा - कोई मेहमान आए तो उनका ध्यान कौन रखता है ?
 
            युवक - मेरी पत्नी...
 
            बुजुर्ग -  परेशानी और गम में कौन साथ देता है ?
 
            युवक :-  मेरी पत्नी...
 
            बुजुर्ग -  अपने माता पिता का घर छोड़कर जिंदगी भर के लिए तुम्हारे साथ कौन आया  ?
 
            युवक -  मेरी पत्नी...
 
            बुजुर्ग -  बीमारी में तुम्हारा ध्यान और सेवा कौन करता है ?
 
            युवक :-  मेरी पत्नी...
 
            बुजुर्ग बोले :- एक बात और बताओ तुम्हारी पत्नी इतना काम और सबका ध्यान रखती है । क्या कभी उसने तुमसे इस बात के पैसे लिए ?
 
            युवक -  कभी नहीं...
 
            इस पर बुजुर्ग बोले कि -  पत्नी की एक कमी तुम्हें नजर आ गई, मगर उसकी इतनी सारी खूबियाँ तुम्हें नजर नहीं आईं ?

            क्या तुम्हें नहीं लगता कि तुम ही नहीं दुनिया का कोई भी इन्सान पत्नी के बगैर अधूरा ही रहता है ? इसलिये  बेटे... पत्नी जो ईश्वर का दिया एक स्पेशल उपहार है इसलिए उसकी उपयोगिता जानो और उसकी छोटी-मोटी कमी को अनदेखा करते हुए सदैव उसकी देखभाल व परवाह करो ।

            आखिर पति के लिए पत्नी क्यों जरूरी है ?
   
            जब तुम दुःखी हो, तो वह तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ेगी ।

            हर वक्त,  हर दिन,  तुम्हें तुम्हारे अन्दर की बुरी आदतें छोड़ने को कहेगी ।


            हर छोटी-छोटी बात पर तुमसे झगड़ा करेगी, किंतु ज्यादा समय तक गुस्सा भी नहीं रह पाएगी ।


            छोटी-छोटी बचत के द्वारा तुम्हें आर्थिक मजबूती देगी ।


            कुछ भी अच्छा न हो, फिर भी, तुम्हें यही कहेगी; चिन्ता मत करो, सब ठीक हो जाएगा।


            तुम्हें समय का पाबन्द बनाएगी।

              यह जानने के लिए कि तुम क्या कर रहे हो,  दिन में 10 बार फोन करके  हाल पूछेगी । कभी - कभी तुम्हें खीझ भी आएगी, पर फिर भी सच यह है कि तुम कुछ कर नहीं पाओगे ।

             इसलिए हमेशा अपनी पत्नी की उपयोगिता जानो और स्नेह व प्यार से उसकी देखभाल करो । 

   

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

अहसास के रिश्ते...


          रामायण कथा का एक अंश, जिससे हमें सीख मिलती है "एहसास" की...  
          श्री राम, लक्ष्मण एवम् सीता मैया चित्रकूट पर्वत की ओर जा रहे थे, राह बहुत पथरीली और कंटीली थी, अचानक श्री राम के चरणों में कांटा चुभ गया । श्रीराम रुष्ट या क्रोधित नहीं हुए, बल्कि हाथ जोड़कर धरती माता से अनुरोध करने लगे, बोले- "माँ, मेरी एक विनम्र प्रार्थना है आपसे, क्या आप स्वीकार करेंगी ?"
 
          धरती बोली- "प्रभु प्रार्थना नहीं, आज्ञा दीजिए !"
 
         प्रभु बोले, "माँ, मेरी बस यही विनती है कि जब भरत मेरी खोज में इस पथ से गुज़रे, तो आप नरम हो जाना । कुछ पल के लिए अपने आंचल के ये पत्थर और कांटे छुपा लेना । मुझे कांटा चुभा तो कोई बात नहीं, पर मेरे भरत के पांव मे आघात मत लगने देना" ।
          श्री राम को यूं व्यग्र देखकर धरा दंग रह गई ! पूछा- "भगवन् , धृष्टता क्षमा हो - पर क्या भरत आपसे अधिक सुकुमार हैं ?  जब आप इतनी सहजता से सब सहन कर गए, तो क्या कुमार भरत सहन नहीं कर पाएंगे ? फिर उनको लेकर आपके चित्त में ऐसी आकुलता क्यों ?"
 
          श्री राम बोले- "नहीं माते,  आप मेरे कहने का अभिप्राय नहीं समझीं ! भरत को यदि कांटा चुभा, तो वह उसके पांव को नहीं, उसके हृदय को विदीर्ण कर देगा !" 
 
          "हृदय विदीर्ण ! ऐसा क्यों प्रभु ?", धरती माँ जिज्ञासा भरे स्वर में बोलीं !
 
          "अपनी पीड़ा से नहीं माँ, बल्कि यह सोचकर कि... इसी कंटीली राह से मेरे भैया राम गुज़रे होंगे और ये शूल उनके पगों में भी चुभे होंगे ! माते, मेरा भरत कल्पना में भी मेरी पीड़ा सहन नहीं कर सकता, इसलिए उसकी उपस्थिति में आप कमल पंखुड़ियों सी कोमल बन जाना..!"
 
          इसीलिए कहा गया है कि...
 
          रिश्ते खून से नहीं, परिवार से नहीं, मित्रता से नही,  व्यवहार से नही, बल्कि... सिर्फ और सिर्फ आत्मीय "एहसास" से ही बनते और निर्वहन किए जाते हैं ।  जहाँ एहसास ही नहीं, आत्मीयता ही नहीं .. वहाँ अपनापन कहाँ से आएगा ?


रविवार, 5 फ़रवरी 2017

इज्जत अफजाई...



          गांव के लल्लन महाराज की 84 साल की माताजी का स्वर्गवास हो गया । तेरहवी में भोज का इंतेज़ाम हुआ, बंता हलवाई तरह-तरह के पकवान बनवा रहा था ।  मोहनथाल, पूरी, कचोरी, खाजा, लड्डू की सुगंध फ़िज़ाओं में बिखर रही थी । आसपास के गांव के कुत्ते उस सुगंध से आकर्षित होकर खाना बनाने की जगह इकठ्ठा होने लगे, लेकिन दुत्कार और ढेलों की मदद से  भगाये  जाने से पास के खेत में सारे कुत्ते इकठ्ठा हो गए ।
 
          एक कुत्ता बोला - में देख कर आता हूँ क्या-क्या बन गया खाने में । वो जैसे ही बंता हलवाई की रसोई के पास पहुंचा,  उसको डंडों से तुरंत मार कर भगा दिया गया । बेचारा जान बचा कर खेत पर आया तो सब कुत्तों ने हाल पूछा तो कुत्ता बोला - अरे भाई जाते ही तुरंत दे रहे हैं, तत्काल दे रहे हैं वो लोग तो ।
 
          थोड़ी देर बाद दूसरा कुत्ता गया, इस बार उसके ऊपर एक रसोइये ने गरम पानी फेंक दिया,  बेचारा कुत्ता पानी झटकते बिलबिलाते  हुए वापस आ गया । फिर सबने हाल पूछा तो वो बोला कुत्ता - अरे भाई वो तो गर्मागर्म दे रहे हैं,  पहुंचते ही गर्मागर्म दे रहे हैं ।
 
          थोड़ी देर बाद तीसरा कुत्ता हिम्मत करके पहुंचा,  रसोइये भी तैयार थे । उस कुत्ते को कई लोगों ने घेर कर बहुत देर तक मारा, बच कर जाने ही नहीं दे रहे थे । लंगड़ाते हुए वो कुत्ता वापस पहुंचा तो सबने फिर हाल पूछा तो कुत्ता बोला - अरे भाई लोगों क्या बताऊँ ! ऐसा सत्कार हुआ की वो लोग वापस ही नहीं आने दे रहे थे । घेर-घेर कर रोकते हुए दे रहे थे ।
 
          मोरल ऑफ़ स्वान कथा : ''अपनी इज़्ज़त अपने हाथ में है, बेइज़्ज़ती को भी इज़्ज़त अफ़ज़ाई में तब्दील किया जा सकता है'' ।

ऐतिहासिक शख्सियत...

पागी            फोटो में दिखाई देने वाला जो वृद्ध गड़रिया है    वास्तव में ये एक विलक्षण प्रतिभा का जानकार रहा है जिसे उपनाम मिला था...