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रविवार, 6 अक्टूबर 2019

मुस्कुराओ - तो कोई बात बने...


       अगर आप डॉक्टर हैं और मुस्कराते हुए मरीज का इलाज करेंगे तो मरीज का आत्मविश्वास दोगुना हो जायेगा ।

            जब आप मुस्कुराते हुए शाम को घर में घुसेंगे तो देखना पूरे परिवार में खुशियों का माहौल बन जायेगा ।

            अगर आप एक बिजनेसमैन या  कर्मचारी हैं और आप खुश होकर कंपनी में घुसते हैं तो देखिये सारे कर्मचारियों के मन का प्रेशर कम हो जायेगा और माहौल खुशनुमा हो जायेगा ।

            अगर आप दुकानदार हैं और मुस्कुराकर अपने ग्राहक का सम्मान करेंगे तो ग्राहक खुश होकर आपकी दुकान से ही सामान लेगा ।

            कभी सड़क पर चलते हुए अनजान आदमी को देखकर मुस्कुराएं,  देखिये उसके चेहरे पर भी मुस्कान आ जाएगी ।

        1.  मुस्कुराइए, क्योंकि मुस्कराहट के पैसे नहीं लगते ये तो ख़ुशी और संपन्नता की पहचान है ।

            2.  मुस्कुराइए,  क्योंकि आपकी मुस्कराहट कई चेहरों पर मुस्कान लाएगी ।

            3.  मुस्कुराइएक्योंकि ये जीवन आपको दोबारा नहीं मिलेगा ।

           4.  मुस्कुराइएक्योंकि क्रोध में दिया गया आशीर्वाद भी बुरा लगता है और मुस्कुराकर कहे गए बुरे शब्द भी अच्छे लगते हैं ।"

            5.  मुस्कुराइए, क्योंकि दुनिया का हर आदमी खिले फूलों और खिले चेहरों को पसंद करता है ।"

            6.  मुस्कुराइए,  क्योंकि आपकी हँसी किसी की ख़ुशी का कारण बन सकती है ।"

            7.  मुस्कुराइए, क्योंकि परिवार में रिश्ते तभी तक कायम रह पाते हैं जब तक हम एक दूसरे से मुस्कुराते हुए सम्पर्क में रहते है"

और सबसे बड़ी बात

            8.  मुस्कुराइए, क्योंकि यह मनुष्य होने की पहली शर्त है । एक पशु कभी भी नहीं मुस्कुरा सकता ।

              प्रसन्नता मुस्कराहट से ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि मुस्कुराहट होठों से आती हैजबकि प्रसन्नता दिल से.

           
तो प्रसन्न रहिये और मुस्कुराते रहिये. प्रभु से प्रार्थना है के आज-


 आपका दिन शुभ हो...

             
 

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

अहसास के रिश्ते...


          रामायण कथा का एक अंश, जिससे हमें सीख मिलती है "एहसास" की...  
          श्री राम, लक्ष्मण एवम् सीता मैया चित्रकूट पर्वत की ओर जा रहे थे, राह बहुत पथरीली और कंटीली थी, अचानक श्री राम के चरणों में कांटा चुभ गया । श्रीराम रुष्ट या क्रोधित नहीं हुए, बल्कि हाथ जोड़कर धरती माता से अनुरोध करने लगे, बोले- "माँ, मेरी एक विनम्र प्रार्थना है आपसे, क्या आप स्वीकार करेंगी ?"
 
          धरती बोली- "प्रभु प्रार्थना नहीं, आज्ञा दीजिए !"
 
         प्रभु बोले, "माँ, मेरी बस यही विनती है कि जब भरत मेरी खोज में इस पथ से गुज़रे, तो आप नरम हो जाना । कुछ पल के लिए अपने आंचल के ये पत्थर और कांटे छुपा लेना । मुझे कांटा चुभा तो कोई बात नहीं, पर मेरे भरत के पांव मे आघात मत लगने देना" ।
          श्री राम को यूं व्यग्र देखकर धरा दंग रह गई ! पूछा- "भगवन् , धृष्टता क्षमा हो - पर क्या भरत आपसे अधिक सुकुमार हैं ?  जब आप इतनी सहजता से सब सहन कर गए, तो क्या कुमार भरत सहन नहीं कर पाएंगे ? फिर उनको लेकर आपके चित्त में ऐसी आकुलता क्यों ?"
 
          श्री राम बोले- "नहीं माते,  आप मेरे कहने का अभिप्राय नहीं समझीं ! भरत को यदि कांटा चुभा, तो वह उसके पांव को नहीं, उसके हृदय को विदीर्ण कर देगा !" 
 
          "हृदय विदीर्ण ! ऐसा क्यों प्रभु ?", धरती माँ जिज्ञासा भरे स्वर में बोलीं !
 
          "अपनी पीड़ा से नहीं माँ, बल्कि यह सोचकर कि... इसी कंटीली राह से मेरे भैया राम गुज़रे होंगे और ये शूल उनके पगों में भी चुभे होंगे ! माते, मेरा भरत कल्पना में भी मेरी पीड़ा सहन नहीं कर सकता, इसलिए उसकी उपस्थिति में आप कमल पंखुड़ियों सी कोमल बन जाना..!"
 
          इसीलिए कहा गया है कि...
 
          रिश्ते खून से नहीं, परिवार से नहीं, मित्रता से नही,  व्यवहार से नही, बल्कि... सिर्फ और सिर्फ आत्मीय "एहसास" से ही बनते और निर्वहन किए जाते हैं ।  जहाँ एहसास ही नहीं, आत्मीयता ही नहीं .. वहाँ अपनापन कहाँ से आएगा ?


बुधवार, 8 जून 2016

एक जमाना था...


            दादी माँ बनाती थी रोटी, पहली गाय की और आखरी कुत्ते की,  हर सुबह नन्दी आ जाता था,  दरवाज़े पर - गुड़ की  डली के लिए ।

            कबूतर का चुग्गा,  चीटियों का आटा, शनिवार, अमावस, पूर्णिमा का सीधा । सरसों का तेल गली में,  काली कुतिया के ब्याने पर, गुड़ चने का प्रसाद,  सभी कुछ  निकल जाता था । वो भी उस घर से, जिसमें भोग विलास के नाम पर एक टेबल फैन भी न होता था ।

            आज सामान से भरे घरों में - कुछ भी नहीं निकलता ! सिवाय लड़ने की कर्कश आवाजों के, या फिर टी वी की आवाजें...

             तब मकान चाहे कच्चे थे, लेकिन रिश्ते सारे सच्चे थे ।

            चारपाई पर  बैठते थे, दिल में प्रेम से रहते थे । सोफे और डबल बैड क्या आ गए ?  दूरियां हमारी बढा गए ।

            छतों पर. सब सोते थे, बात बतंगड खूब होते थे, आंगन में वृक्ष थे, सांझे सबके सुख दुख थे ।

            दरवाजा खुला रहता था, राही भी आ बैठता था, कौवे छत पर कांवते थे, मेहमान भी आते जाते थे ।

            एक साइकिल ही पास था, फिर भी मेल जोल का वास था, रिश्ते सभी निभाते थे, रूठते भी थे और मनाते भी थे ।

            पैसा चाहे कम था, फिर भी माथे पे कोई गम ना था, कान चाहे कच्चे थे, पर रिश्ते सारे सच्चे थे !

             अब शायद सब कुछ पा लिया है, पर लगता है कि बहुत कुछ गंवा दिया है...

ऐतिहासिक शख्सियत...

पागी            फोटो में दिखाई देने वाला जो वृद्ध गड़रिया है    वास्तव में ये एक विलक्षण प्रतिभा का जानकार रहा है जिसे उपनाम मिला था...