वक़्त
फ़िल्म का एक डायलॉग- "चाय की प्याली हाथ में उठा कर मुंह तक तक ले जाते-जाते
कई बार बरसों बीत जाते हैं, पोटली रुपयों से भरी हो पर इंसान कभी-कभी भीख मांगने
पर मजबूर हो जाता है" । फिल्मी दुनिया में ऐसे कारनामे अक्सर होते रहते
हैं, इनमें एक क़िस्सा एक मशहूर घर का भी है, जो अपने आप में इतिहास है !
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मेरठ
से आया एक नौजवान जब बैजू बावरा में- 'तू गंगा की मौज, मैं जमुना
की धारा' गीत अपने लहराते बालों से गाता है तो फ़िल्मी दुनिया में तहलका मच जाता है और वो रातों-रात स्टार बन जाता है, बात हो रही है भारत भूषण की । भारत भूषण जब
बुलंदियो पर थे, तो जुहू बीच पर उन्होंने एक बंगला खरीदा, सामने समंदर की लहरें और
हवाएं..!
सब
कुछ सही चल रहा था, तब भारत भूषण ने फिल्मों को प्रोड्यूस करने का सोचा, बरसात की
रात जैसी सुपर हिट फ़िल्म भी बनाई, फिर अगली दो-चार फिल्में नहीं चली और उनके सितारे
गर्दिश में आ गए, घाटा हुआ तो क़र्ज़ों के बोझ तले आ गए, अपनी जमा पूंजी बेच कर
क़र्ज़े चुकाए जाने लगे, जिसमें ये बंगला भी था..!
उन
दिनों एक और स्टार तेज़ी से उभर रहा था राजेन्द्र कुमार ! तो ये बंगला भारत भूषण से
इन्होंने 25 हज़ार रुपये में खरीद लिया, और उस बंगले का नाम 'डिंपल"
रखा, जो उनकी बेटी का ही नाम है, बंगले में आने के बाद राजेन्द्र कुमार सफलता की
सीढ़ियां चढ़ते ही गए..! फिर राजेन्द्र कुमार का भी सितारा मद्धम हुआ, क्योंकि एक और
बड़ा स्टार फ़िल्मी दुनिया में छा चुका था, नाम था.. राजेश खन्ना । उन्हें ये बंगला
बड़ा पसंद था, पर राजेन्द्र कुमार उसे बेचने के मूड में नहीं थे ! लेकिन एक दिन
अचानक राजेन्द्र कुमार को पैसों की ज़रूरत आन पड़ी.. उन्होंने राजेश खन्ना को एप्रोच
किया, लेकिन कीमत इतनीं मांगी कि राजेश खन्ना जैसे स्टार को भी देने में मुश्किल
आयी, कीमत थी 10 लाख रुपये..!
राजेश
खन्ना उन दिनों बड़े स्टार ज़रूर थे, लेकिन मेहनताना इतना नहीं मिलता था कि एक साथ इतना
पेमेंट कर सकें, राजेश खन्ना को ये बंगला हाथ से निकलता नज़र आया, तभी एक और
दिलचस्प वाक़या हुआ... दक्षिण के एक बड़े फ़िल्म प्रोड्यूसर चिनप्पा देवर हिंदी में
एक फ़िल्म राजेश खन्ना को लेकर बनाना चाह रहे थे ।
राजेश
खन्ना बहुत व्यस्त थे इसलिए वो इसे करने में आनाकानी कर रहे थे, और चिनप्पा देवर लगातार
एप्रोच कर रहे थे तब राजेश खन्ना ने उन्हें टरकाने कें लिये भारी-भरकम फीस मांग ली,
जो थी 10 लाख रुपये । चिनप्पा देवर हैरान
थे क्योंकि उस समय कोई भी बड़ा एक्टर 2-3 लाख ही लिया करता था, और राजेश खन्ना ने
एक साथ 10 लाख मांगे और साथ में ये भी कह दिया कि सारे पैसे एडवांस ही चाहिए, क्योंकि
मुझे एक बंगला खरीदना है..!
चिनप्पा
देवर ने सारी बात जानी तो उन्होंने एक साथ 10 लाख रुपये राजेश खन्ना को थमा दिये और
फ़िल्म शुरू हुई जो सुपर हिट साबित हुई । फ़िल्म थी 'हाथी मेरे साथी'...! अब राजेश खन्ना इस बंगले के मालिक थे उन्होंने इस बंगले का नाम रखा "आशीर्वाद"
। लेकिन ये बंगला राजेश खन्ना को ज्यादा फला नहीं, इसे खरीदने के बाद दो-तीन सालों
में ही राजेश खन्ना का कैरियर नीचे आता गया, शादी हुई इसी बंगले में लेकिन वो भी
ज्यादा सफल नहीं रही, जिसका नतीजा राजेश खन्ना और डिंपल कापडिया के बीच अलहदगी के
रुप में सामने आया ।
राजेश
खन्ना इस बंगले में आने के बाद फिर कभी उस ऊंचाई तक नहीं पहुंच सके जहां वो पहले
थे । धीरे-धीरे वो भी गुमनाम होते गए और आख़िर में मरने के बाद अपनी वसीयत में ये
बंगला जब वो अपनी बेटियों के नाम कर गए तो उन्होंने इसे बेच दिया और आधा-आधा पैसा
बांट लिया । आशीर्वाद बंगला बिका 150 करोड़ रुपये में ।
और आखिर
में भारत भूषण ? जिनका ये बंगला था.. वो अपने जीवन के आख़िरी सफ़र तक एक झोपड़पट्टी में ही
रहे और बसों में सफर करते रहे, वो बस उस
बंगले से गुज़रते और देखा करते जो कभी उनका अपना था । वक़्त आख़िर इसे ही तो कहते
है..!
फिल्मजगत
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