एक समय देवदूत ईश्वर की सौगात लेकर पृथ्वी पर आया । सबसे पहले उसका सामना एक मोहल्ले में खेल रहे कुछ बच्चों से हुआ । उसने उन बच्चों से कहा- भगवान ने तुम्हारे लिये सौगात भेजी है आकर ले लो.
बच्चे अपने खेल में तल्लीन थे. उन्होंने एक स्वर में उस देवदूत से कहा- अभी हम खेल रहे हैं तुम उसे वहीं पत्थर पर रखदो । हम खेल खत्म करके ले लेंगे । देवदूत उनकी सौगात पत्थर पर रखकर चला गया ।
फिर वह देवदूत एक युवक के पास पहुँचा व उससे बोला- भगवान ने तुम्हारे लिये सौगात भेजी है । युवक ने अपने हाथ उस सौगात को लेने के लिये आगे बढा दिये और देवदूत युवक के हाथ पर सौगात रखकर चला गया ।
अन्त में देवदूत एक घर के बाहर खटिया पर लेटे एक वृद्ध के पास पहुँचा और उससे भी यही कहा- भगवान ने तुम्हारे लिये सौगात भेजी है, ले लो ।
वृद्ध को बहुत गुस्सा आया, वो बोला- जीते जी तो कुछ दिया नहीं और मौत के दरवाजे तक आ पहुँचने पर अब मेरे लिये सौगात भेजी है, क्रोधित अवस्था में वृद्ध उस देवदूत से बोला- ला रख दे मेरी छाती पर. और देवदूत उस वृद्ध की सौगात को उसकी छाती पर रखकर चला गया ।
ईश्वर की भेजी वह सौगात क्या थी ? वह सौगात थी ठंड.
अब हम देखते हैं, कितनी भी ठंड क्यों न हो वह छोटे बच्चों को परेशान नहीं कर पाती । उनके अभिभावकों को ही उन्हें अपनी ओर से ठंड से बचाने की कोशिश करना पडती है, वर्ना उनकी ठंड तो दूर पत्थर पर पडी है ।
युवा वर्ग में ठंड से बचाव के लिये हाथ के मौजे सबसे अधिक इस्तेमाल किये जाते हैं, क्योंकि उनकी ठंड उनकी हथेलियों पर रखी हुई है ।
और बुजुर्ग वृद्ध जिसने इस सौगात को अपनी छाती पर रखवा लिया था उन्हे स्वेटर, शाल, कम्बल, सभी माध्यमों से अपनी छाती का सर्वाधिक बचाव इस ठंड से करते देखा जा सकता है ।
9 टिप्पणियां:
प्रकृति का हर रंग ईश्वर की ही सौगात है ...
मगर ठण्ड के बारे में इस तरह कभी सोचा नहीं था ...
रोचक सौगात, ठंड की।
रोचक पोस्ट। धन्यवाद।
nice post
पांच लाख से भी जियादा लोग फायदा उठा चुके हैं
प्यारे मालिक के ये दो नाम हैं जो कोई भी इनको सच्चे दिल से 100 बार पढेगा।
मालिक उसको हर परेशानी से छुटकारा देगा और अपना सच्चा रास्ता
दिखा कर रहेगा। वो दो नाम यह हैं।
या हादी
(ऐ सच्चा रास्ता दिखाने वाले)
या रहीम
(ऐ हर परेशानी में दया करने वाले)
आइये हमारे ब्लॉग पर और पढ़िए एक छोटी सी पुस्तक
{आप की अमानत आपकी सेवा में}
इस पुस्तक को पढ़ कर
पांच लाख से भी जियादा लोग
फायदा उठा चुके हैं ब्लॉग का पता है aapkiamanat.blogspotcom
सुशील जी , हमें तो अब ठण्ड छाती में लगनी शुरू हो गई है । यानि अब हम भी बुजुर्गों की श्रेणी में आ गए , अकाल ही । :)
रोचक प्रस्तुति ।
डा.दराल सा.
यह तो तय है कि अब हम प्रौढावस्था में या तो प्रवेश कर गये हैं या फिर उसके करीब आ पहुँचे होंगे तो लक्षणों की शुरुआत तो होनी ही है न ।
क्या खूब परिचय दिया है ठंड का,बहुत खूब ।
मजेदार जानकारी के लिए आभार ।
एक टिप्पणी भेजें