एक सुबह एक पंडितजी नदी पार करने के निमित्त नाव पर सवार हुए । अपनी मौज में चप्पू चलाते गाने में मग्न नाविक से रास्ते में पंडितजी ने पूछा- कभी रामायण पढी है ?
नहीं महाराज. नाविक ने उत्तर दिया ।
अरे रे, तुम्हारा एक चौथाई जीवन तो बेकार ही गया । पंडितजी नाविक से बोले । नाविक सुनकर भी अपने चप्पू चलाता रहा ।
कुछ समय बाद फिर पंडितजी ने नाविक से पूछा- भगवतगीता के बारे में तो हर कोई जानता है । तुमने गीता तो पढी ही होगी ।
नहीं महाराज । नाविक ने फिर उत्तर दिया ।
हिकारत भरी शैली में तब पंडितजी उस नाविक से बोले- फिर तो तुम्हारा आधा जीवन बेकार ही गया ।
नाविक बगैर कुछ बोले अपनी नाव के चप्पू चलाता रहा । बीच नदी में अचानक नाविक की नजर नाव के ऐसे छेद पर पडी जिसमें से तेजी से नाव में पानी भर रहा था ।
अब नाविक ने पंडितजी से पूछा- महाराज क्या आप तैरना जानते हो ? नहीं भैया. पंडितजी ने उत्तर दिया ।
फिर तो आपका पूरा जीवन ही बेकार गया । कहते हुए जय बजरंग बली का नारा लगाकर नाविक नदी में कूद गया और तैरते हुए किनारे पहुँच गया ।
तमाम शास्त्रों के ज्ञाता बेचारे पंडितजी...
ज्ञान गर्वीला होता है कि उसने बहुत कुछ सीख लिया, बुद्धि विनीत होती है कि वह अधिक कुछ जानती ही नहीं ।
13 टिप्पणियां:
ज्ञान वर्धक प्रसंग ।
यह पढकर एक शेर याद आ गया,मौजू लगता है.
फिक्र में डूब रहे सब अदीब-ओ-दानिशमंद,
एक गाफ़िल को मगर पूरा इत्मीनान रहे.
सही है कितना ही ज्ञान हो लेकिन दुनिया में कैसे रहा और कैसे जीया जाता है का ज्ञान नहीं हो तो डूबना निश्चित ही है।
जीवन जीने में व्यवहारिक ज्ञान ही अधिक कारगर है !
सही बात है, व्यवहारिकता पुस्तकीय ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण है।
व्यवहार नहीं तो ज्ञान अधूरा
रोचक तरीके से काम की बात कह दी ।
बढ़िया प्रसंग ।
सुन्दर प्रस्तुति.
बहुत सुन्दर रोचक प्रस्तुति...आभार
सुशील जी, बहुत ही अच्छी सीख देती पोस्ट....... सच जिसने व्यावहारिक जिंदगी का पाठ नहीं सिखा पूरी शिक्षा ही व्यर्थ है. सुंदर प्रस्तुति...
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नये दसक का नया भारत (भाग- १) : कैसे दूर हो बेरोजगारी ?
रोचक प्रस्तुति...आभार
ekdam sahi likhe hain.vyawharik gyan bahut zaroori hota hai.
बहुत खूब।
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