आज का प्रत्येक इन्सान येन-केन-प्रकारेण पैसे के पीछे एक ही प्रकार की अन्धी दौड में दौडता चला जा रहा है । जेब भर जावे तो तिजोरी भरना है, तिजोरी भर जावे तो बैंक में भर देना है, और बैंक में आयकर के चपेटे में आ जाने का अंदेशा बनने लगे तो फिर स्विस बैंक तो है ही । सबकी एक ही सोच, एक ही जीवन दर्शन-
ऐसा हो वैसा हो, फिर चाहे जैसा हो, पर हाथ में पैसा हो.
जबकि खाना यही रोटी है जो पेट भरने के बाद उस वक्त तो किसी काम की नहीं बचती, पहनना यही एक जोडी कपडे हैं जो अल्मारीयों में भले ही सैकडों जोडे भर लिये जावें किन्तु एक बार में एक से अधिक किसी काम नहीं आते, घूमने के लिये एक वाहन भी बहुत होता है, फिर चाहे वाहनों के जखीरे ही क्यों ना खडे कर दिये जावें, और रहना भी एक ही घर में है फिर चाहे हर कालोनी, हर शहर में अपने अनेकों घर बना लिये जावें ।
मेरी इस बात का यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि यदि आप अपनी योग्यता के बल पर ये पैसा कमा रहे हैं तो इसे न कमावें । किन्तु ये तो है कि जब हमारा कल सुरक्षित लगने लगे तो कम से कम इस पैसे को जोडने की होड में किसी भी प्रकार के भ्रष्ट तरीके अपनाने की दौड में शामिल न रहें ।
पैसा तो अपने पूर्वज भी कमाते थे और बडे-बडे सेठ साहूकारों में उनके नाम भी गिने जाते थे, किन्तु उनमें बेईमानी के द्वारा पैसे जोडने की आदत बिरले ही कहीं देखने में आती थी , बल्कि समाज से कमाये गये उस पैसे को प्रायः प्याऊ, धर्मशाला व मन्दिर जैसे रुप में इस्तेमाल कर समाज के उपयोग के लिये ही छोड भी जाते थे जबकि आज मैं और मेरे बाद से आगे की सोच देखने में आती ही नहीं है और हम सभी और अभी, और अभी की होड में इस पैसे को जोडते चले जाने की दिशा में न दिन का चैन देख रहे हैं और ना ही रात का आराम । पहले स्वास्थ्य को खर्च करके धन बचा रहे हैं और फिर उस धन को डाक्टरों व अस्पतालों में खर्च करके स्वास्थ्य बचाने का प्रयास कर रहे हैं । कहाँ ले जा रही है यह अन्धी दौड इस मानव समाज को ? जबकि हम लगातार यह सुनते चले आ रहे हैं कि
पूत कपूत तो क्यों धन संचय और पूत सपूत तो क्यों धन संचय.
क्या हमारे पुरखों का ये जीवन दर्शन सही नहीं था कि-
15 टिप्पणियां:
यह समझ जब तक आती है, लोग दलदल में उतर चुके होते हैं।
बिल्कुल सही..... यही बात तो समझने की आवश्यकता है......
बात तो आपकी सोलह आने सही है पर समझ किसे आती है
पूत कपूत तो क्यों धन संचय और पूत सपूत तो क्यों धन संचय.
bilkul sahi baat hai.
जो भ्रष्टाचार के दलदल में उतर जाते हैं वे उससे कभी नहीं निकल पाते..संतोष के धरातल पर ही व्यक्ति आगे बढ़ सकता है..
बाकलीवाल साहब , बहुत ही अच्छी सीख देती हुई पोस्ट.... मगर आज का आदमी इतना लोभी हो गया है की कुछ भी सीख बेकार लगती है . एक बहुत ही अच्छी सोंच के साथ लिखी एक अच्छी पोस्ट.
बहुत सही कहा आपने।
jeevan me utaarne wali seekh nihit hai aapke is lekh me...
सांई इतना दीजिये जामे कुटुंब समाय, मैं भी भूखो ना रहूँ साधु न भूखो जाय.
सत्य है
http://pachhuapawan.blogspot.com/2011/01/run-for-saving-environment.html
अक्षरशः सत्य !
बहुत ही अच्छी सीख देती हुई पोस्ट....
बिलकुल सही कहा आपने .... वक़्त रहते अगर संभल जाए तो ठीक है ...
जहाँ सारे लोग भ्रष्टाचारी हो वहाँ एक धर्मात्मा का कोई मोल नहीं रह जाता है । उसका लोग सिर्फ मजाक ही उड़ाते हैं ,या फिर उसके पीठ पीछे गाली ही देते हैं । इस धरती पर सवा लाख लोगों पर केवल एकाद धर्मात्मा मिलेंगे । बाकी सब वैसे ही है ।
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