शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

भ्रष्टाचार की जड

          आज का प्रत्येक इन्सान येन-केन-प्रकारेण पैसे के पीछे एक ही प्रकार की अन्धी दौड में दौडता चला जा रहा है । जेब भर जावे तो तिजोरी भरना है, तिजोरी भर जावे तो बैंक में भर देना है, और बैंक में आयकर के चपेटे में आ जाने का अंदेशा बनने लगे तो फिर स्विस बैंक तो है ही । सबकी एक ही सोच, एक ही जीवन दर्शन-

ऐसा हो वैसा हो, फिर चाहे जैसा हो, पर हाथ में पैसा हो.

          जबकि खाना यही रोटी है जो पेट भरने के बाद उस वक्त तो किसी काम की नहीं बचती,  पहनना यही एक जोडी कपडे हैं जो अल्मारीयों में भले ही सैकडों जोडे भर लिये जावें किन्तु एक बार में एक से अधिक किसी काम नहीं आते, घूमने के लिये एक वाहन भी बहुत होता है, फिर चाहे वाहनों के जखीरे ही क्यों ना खडे कर दिये जावें, और रहना  भी एक ही घर में है फिर चाहे हर कालोनी, हर शहर में अपने अनेकों घर बना लिये जावें ।

          मेरी इस बात का यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि यदि आप अपनी योग्यता के बल पर ये पैसा कमा रहे हैं तो इसे न कमावें । किन्तु ये तो है कि जब हमारा कल सुरक्षित लगने लगे तो कम से कम इस पैसे को जोडने की होड में किसी भी प्रकार के भ्रष्ट तरीके अपनाने की दौड में शामिल न रहें ।

          मैंने तो अपने अभी तक के जीवन में अधिकांश उदाहरण ऐसे ही देखे हैं कि यदि पिता ने अपनी योग्यता, प्रतिभा या किस्मत के बल पर धन के अंबार जमा कर दिये तो उनके पुत्र फिर अपने जीवन में उस धन को उजाड तो देते हैं किन्तु अपनी प्रतिभा का विकास कर स्वयं उस धन को कमा पाने की कभी जहमत नहीं उठा पाते । चाहे फिल्म जगत में आप देखें, राजनीति के क्षेत्र में देखें या फिर किसी भी क्षेत्र में देखलें । कहीं किस्मत के बल पर अपवाद देखने में भले ही आ जावे किन्तु अधिकांश उदाहरणों में तो यही देखने में आता रहा है ।

         पैसा तो अपने पूर्वज भी कमाते थे और बडे-बडे सेठ साहूकारों में उनके नाम भी गिने जाते थे, किन्तु उनमें बेईमानी के द्वारा पैसे जोडने की आदत बिरले ही कहीं देखने में आती थी , बल्कि समाज से कमाये गये उस पैसे को प्रायः प्याऊ, धर्मशाला व मन्दिर जैसे रुप में इस्तेमाल कर समाज के उपयोग के लिये ही छोड भी जाते थे जबकि आज मैं और मेरे बाद से आगे की सोच देखने में आती ही नहीं है और हम सभी और अभी, और अभी की होड में इस पैसे को जोडते चले जाने की दिशा में न दिन का चैन देख रहे हैं और ना ही रात का आराम । पहले स्वास्थ्य को खर्च करके धन बचा रहे हैं और फिर उस धन को डाक्टरों व अस्पतालों में खर्च करके स्वास्थ्य बचाने का प्रयास कर रहे हैं । कहाँ ले जा रही है यह अन्धी दौड इस मानव समाज को ? जबकि हम लगातार यह सुनते चले आ रहे हैं कि  
         पूत कपूत तो क्यों धन संचय और पूत सपूत तो क्यों धन संचय.

       क्या हमारे पुरखों का ये जीवन दर्शन सही नहीं था कि-
        सांई इतना दीजिये जामे कुटुंब समाय, मैं भी भूखो ना रहूँ साधु न भूखो जाय.

15 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

यह समझ जब तक आती है, लोग दलदल में उतर चुके होते हैं।

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बिल्कुल सही..... यही बात तो समझने की आवश्यकता है......

Deepak Saini ने कहा…

बात तो आपकी सोलह आने सही है पर समझ किसे आती है

mridula pradhan ने कहा…

पूत कपूत तो क्यों धन संचय और पूत सपूत तो क्यों धन संचय.
bilkul sahi baat hai.

Kailash Sharma ने कहा…

जो भ्रष्टाचार के दलदल में उतर जाते हैं वे उससे कभी नहीं निकल पाते..संतोष के धरातल पर ही व्यक्ति आगे बढ़ सकता है..

उपेन्द्र नाथ ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
उपेन्द्र नाथ ने कहा…

बाकलीवाल साहब , बहुत ही अच्छी सीख देती हुई पोस्ट.... मगर आज का आदमी इतना लोभी हो गया है की कुछ भी सीख बेकार लगती है . एक बहुत ही अच्छी सोंच के साथ लिखी एक अच्छी पोस्ट.

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

बहुत सही कहा आपने।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

jeevan me utaarne wali seekh nihit hai aapke is lekh me...

PAWAN VIJAY ने कहा…

सांई इतना दीजिये जामे कुटुंब समाय, मैं भी भूखो ना रहूँ साधु न भूखो जाय.

सत्य है

PAWAN VIJAY ने कहा…

http://pachhuapawan.blogspot.com/2011/01/run-for-saving-environment.html

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

अक्षरशः सत्य !

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही अच्छी सीख देती हुई पोस्ट....

Dr Xitija Singh ने कहा…

बिलकुल सही कहा आपने .... वक़्त रहते अगर संभल जाए तो ठीक है ...

मन मोहन कृष्ण ने कहा…

जहाँ सारे लोग भ्रष्टाचारी हो वहाँ एक धर्मात्मा का कोई मोल नहीं रह जाता है । उसका लोग सिर्फ मजाक ही उड़ाते हैं ,या फिर उसके पीठ पीछे गाली ही देते हैं । इस धरती पर सवा लाख लोगों पर केवल एकाद धर्मात्मा मिलेंगे । बाकी सब वैसे ही है ।

ऐतिहासिक शख्सियत...

पागी            फोटो में दिखाई देने वाला जो वृद्ध गड़रिया है    वास्तव में ये एक विलक्षण प्रतिभा का जानकार रहा है जिसे उपनाम मिला था...