मंगलवार, 1 अक्टूबर 2019

कर्म एक सीख



          एक भिखारी रोज एक दरवाजें पर जाता और भीख के लिए आवाज लगाता, जब घर मालिक बाहर आता तो उसे गालिया और ताने देता- मर जाओ, काम क्यूं नही करते, जीवन भर भीख मांगतें रहोगे, कभी-कभी गुस्सें में उसे धकेल भी देता, पर भिखारी बस इतना ही कहता, ईश्वर तुम्हारें पापों को क्षमा करें,

         एक दिन सेठ बड़े गुस्सें में था, शायद व्यापार में घाटा हुआ था, वो भिखारी उसी वक्त भीख मांगने आ गया, सेठ ने आव देखा ना ताव, सीधा उसे पत्थर से दे मारा, भिखारी के सर से खून बहने लगा।  फिर भी उसने सेठ से कहा- ईश्वर तुम्हारें पापों को क्षमा करें और वहां से जाने लगा । इधर खून देखकर सेठ का गुस्सा काफूर हो गया । वह सोचने लगा- मैंने उसे पत्थर से भी मारा पर उसने बस दुआ ही दी, इसके पीछे क्या रहस्य है जानना पड़ेगा, और वह भिखारी के पीछे लग गया ।

       भिखारी जहाँ भी जाता सेठ उसके पीछे जाता, कही कोई उस भिखारी को भीख दे देता तो कोई उसे जलिल करता, गालियाँ देता, पर भिखारी इतना ही कहता- ईश्वर तुम्हारे पापों को क्षमा करें । अब अंधेरा हो चला था, भिखारी अपने घर लौट रहा था, सेठ भी उसके पीछे था, भिखारी जैसे ही अपने घर लौटा, एक टूटी फूटी खाट पे, एक बुढिया सोई थी, जो भिखारी की पत्नी थी, जैसे ही उसने अपने पति को देखा उठ खड़ी हुई और भीख का कटोरा देखने लगी, उस भीख के कटोरे मे मात्र एक आधी बासी रोटी थी, उसे देखते ही बुढिया बोली बस इतना ही और कुछ नही, और ये आपका सर कैसे फूट गया ?

       भिखारी बोला, हाँ बस इतना ही । किसी ने कुछ नहीं दिया, सबने गालिया दी, पत्थर मारे, इसलिए ये सर फूट गया । फिर भिखारी ने कहा- सब अपने ही पापों का परिणाम है, याद है ना तुम्हेंकुछ वर्षो पहले हम कितने रईस हुआ करते थे । क्या नही था हमारे पास, पर हमने कभी दान नही दिया । याद है तुम्हें वो अंधा भिखारी, बुढिया की ऑखों में ऑसू आ गये और उसने कहा हाँ, कैसे हम उस अंधे भिखारी का मजाक उडाते थे, कैसे उसे रोटियों की जगह खाली कागज रख देते थे, कभी जालिल करते थे, कभी मार व धकेल देते थे । तब बुढिया ने कहा- हाँ सब याद है मुझे । कैसे मैंने भी उसे राह नही दिखाते हुए घर के बनें नालें में गिरा दिया था, जब भी वह रोटी मांगता मैंने बस उसे गालियाँ दी, एक बार तो उसका कटोरा तक फेंक दिया था और वो अंधा भिखारी हमेशा कहता था, तुम्हारे पापों का हिसाब ईश्वर करेंगे, मैं नही देखलो अब उसी भिखारी की हाय और बद्दुआ हमें ले डूबी।

      फिर भिखारी ने कहा- पर मैं किसी को बद्दुआ नही देता, चाहे मेरे साथ कितनी भी ज्यादत्ती क्यूं ना हो जाए । मेरे लब पर हमेशा दुआ रहती है, अब मैं ये नहीं चाहता कि कोई और इतने बुरे दिन देखे । इसीलिये मेरे साथ अन्याय करने वालों को भी मैं दुआ देता हूँ, क्योंकि उन्हें मालूम ही नही, वो क्या पाप कर रहें है, जो सीधा ईश्वर देख रहा हैं । जैसी हमने भुगती है कोई और ना भुगते इसलिए मेरे दिल से बस अपना हाल देख दुआ ही निकलती है ।
     
        सेठ चुपके-चुपके सब सुन रहा था उसे अब सारी बात समझ आ गयी थी ।  बुढे-बुढिया ने आधी रोटी मिलकर खाई और प्रभु की महिमा है बोल कर सो गयें ।

     अगले दिन वह भिखारी फिर भीख मांगने गया । सेठ ने पहले से ही रोटियां निकल के रखी थी । उसने भिखारी को देते हुए हल्की से मुस्कान भरे स्वर में कहा- माफ करना बाबा कल गलती हो गयी । भिखारी ने कहा- ईश्वर तुम्हारा भला करे और वो वहाँ से चला गया ।

       सेठ को एक बात समझ आ गयी थी, इंसान तो बस दुआ-बद्दुआ देते हैं पर पूरी वो ईश्वर कर्मो के हिसाब से स्वयं ही करता है । इसलिये हो सके तो बस अच्छा करें, वो दिखता नही है तो क्या हुआ, सब का हिसाब पक्का रहता है उसके पास ।

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