एक युवती
ने अपने मनपसंद युवक से शादी की किंतु कुछ समय बाद रिश्तों में ऐसी उलझने आने लगी
कि निबाह मुश्किल होता चला गया । दोनों ने आपसी समझ-बूझ से तलाक ले लिया । कुछ समय
बाद युवती ने पुनः एक युवक का इस समझदारी से चुनाव करने का प्रयास किया कि पहले
वाले युवक जैसी समस्या उस युवक के साथ आगे चलकर नहीं आ पाये । संयोगवश उसे ऐसा
युवक मिल भी गया और उन दोनों ने शादी कर ली । किंतु यह क्या ? कुछ समय
पश्चात् यहाँ कुछ अन्य समस्याएँ इस प्रकार की आने लगीं जो पिछली शादी से भी अधिक
कष्टदायी लगने लगी और यह सम्बन्ध भी आगे नहीं चल पाया ।
फिर एक
नया सम्बन्ध फिर कुछ नई समस्याएँ... सम्बन्ध टूटते रहे और नये साथी की तलाश व उससे
जुडाव का सिलसिला चलता चला गया । एक-एक कर वह युवती सात बार अलग-अलग युवकों से
शादी कर चुकी किंतु निबाह किसी एक के साथ भी नहीं कर पाई । अंततः उसने अपने किसी
परिचित बुजुर्ग से इस समस्या का कारण समझने का प्रयास किया । उस बुजुर्ग ने उस
युवती से पूछा कि तुमने सात बार शादियां की और हर शादी नाकाम रही तो तुम यह बताओ
कि हर बार लडके का चुनाव किसने किया ? जी मैंने
ही किया. लडकी ने जवाब दिया ।
ठीक है
अबकी बार तुम शादी अवश्य करो किंतु लडके का चुनाव तुम स्वयं मत करो बल्कि किसी ऐसे
व्यक्ति से यह चुनाव करवाओ जिसे तुम अपना सच्चा शुभचिंतक मानती हो । उस युवती ने
उन बुजुर्ग की सलाह का पालन किया और अपने किसी अनुभवी शुभचिंतक परिजन से अपने लिये
लडका चुनने का अनुरोध किया । उन्होंने उस युवती के लिये कुछ लडकों को देखने-परखने
के बाद एक युवक को उस युवती के लिये चयनित किया जिसे उस युवती ने स्वीकार भी किया
। उन युवक-युवती की शादी भी हो गई और रोजमर्रा के जीवन की वे छोटी-मोटी सामान्य
समस्याएँ जो प्रायः हर किसीके जीवन में आती रहती हैं और जिनसे निपटते चलते जिंदगी
का क्रम चलता रहता है से बडी कोई ऐसी समस्या उस युवती के जीवन में फिर महसूस नहीं
हुई जिससे कि उस सम्बन्ध के साथ जिंदगी का सामान्य क्रम आगे चलते रहने में कोई
विशेष कठिनाई महसूस हुई हो और निबाह असंभव सा लगने लगा हो । कहने कि आवश्यकता ही
नहीं है कि उसके बाद उस युवती को तलाक या नई शादी के पेचिदगी में नहीं उलझना पडा ।
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